________________ 247 गणधरवाद की गाथाएँ इध लोगातो व परो सुरादिलोगो ण सो वि पच्चक्खो। एवं पि रण परलोगो सुव्वति य सुतीसु तो संका // 1655 / / भूतिदियातिरित्तस्स चेतणा सो य दव्वतो रिगच्चो। जातिस्सरणातीहिं पडिवज्जसु वायुभूति व्व / 1956 / / ण य एगो सम्बगतो गिकिरियो लक्खणातिभेतातो। कुंभातो व्व बहवो पडिवज्ज तमिदभूति व्व / / 1957 / / इधलोगातो य परो सोम्म ! सुरा णारगा य परलोगो ! पडिवज्ज मोरयाकंपिय व विहितप्पमाणातो // 1958 / / जोवो विण्णाणमयो तं चारिणच्च ति तो ण परलोगो। अध विण्णाणादण्णो तो अणभिण्णो जधागासं // 1956 / / एत्तो च्चिय ग स कत्ता भोत्ता य अतो वि रात्थि परलोगो / जं च रण संसारी सो अण्णाणामुत्तियो खं व // 1960 / / मण्णसि विणासि चेतो उप्पत्तिमदादितो जधा कंभो / गणु एतं चिय साधणमविरणासित्ते वि से सोम्म ! / / 1661 / / अथवा वत्युत्तणतो विणासि चेतो ण होति कुंभो व्व / उप्पत्तिमतातित्त कधमविरणासी घडो बुद्धी // 1962 // रूव-रस-गंध-फासा संखा संठाण-दव्व-सत्तीयो। कंभो त्ति जतो ताग्रो पसूति-विच्छित्ति-धुवधम्मा॥१६६३।। इध पिंडो पिंडागार-सत्ति-पज्जाय-विलयसमकालं / उपज्जति कुंभागार-सत्तिपज्जायरूवेण // 1964 / / रूवातिदव्बताए ण जाति // य वेति तेण सो रिगच्चो। एवं उप्पात-वय-धुवस्सहावं मतं सव्वं // 1965 / / घडचेतगया णासो पडचेतणया समुभवो समयं / संताणणावत्था तधेह-परलोगजीवाणं / / 1666 / / मणुएहलोगणासो सुरातिपरलोगसंभवो समयं / जीवयाऽवत्थाणं गहभवो व परलोगो।।१६६७ / 1 णेय ता० मु० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org