________________ गणधरवाद की गाथाएँ 227 किध सपरोभयबुद्धी कधं च तेसिं परोप्परमसिद्धी / अघ परमतीए भण्णति सपरमतिविसेसणं कत्तो / / 1706 / / जुगवं कमेण वा ते विण्णाणं होज्ज दीहहस्सेसु / जति जुगवं कावेक्खा कमेण पुव्वम्मि काऽवेक्खा / / 1710 / / प्रातिमविण्णाणं वा जं बालस्सेह तस्स काऽवेक्खा / तुल्लेसु वि कावेक्खा परोप्परं लोयणदुगे व्वं // 1711 // कि हस्सातो दीहे दीहातो चेव किण्ण दीहम्मि / कीस व ण खपुप्फातो किण्ण खपुप्फे खपुप्फातो // 1712 / / किं वाऽवेक्खाए च्चिय होज्ज मती वा सभाव एवायं / सो भावो त्ति सभावो वंज्झापुत्ते ण सो जुत्तो / / 1713 / / होज्जावेक्खातो वा विण्णाणं वाभिधारणमेत्तं वा / दोहं ति व हस्सं ति व ण तु सत्ता सेसधम्मा वा // 1714 / / इधरा हस्साभावे सव्वविरणासो हवेज्ज दीहस्स। ण य सो तम्हा सत्तादयोऽणवेक्खा घडादोणं // 1615 // जाऽवि अवेक्खऽवेक्खणमवेक्खयावेक्खणिज्जमणवेक्खा / सा ण मता सव्वेसु वि संतेसु ण सुण्णता णाम / / 1716 // किंचि सतो तध परतो तदुभयतो किंचि णिच्चसिद्धपि / जलदो घडो पुरिसो णभं च ववहारतो गेयं // 1717 / / पिच्छयतो पुण बाहिरणिमित्तमेत्तोवयोगतो सव्वं / होति सतो जमभावो ण सिज्झति णिमित्तभावे वि // 1718 / / अत्थित्तघडेकाणेगता य पज्जायमेत्तचितेयं / अस्थि घडे पडिवण्णे इधरा सा कि ण खरसिंगे // 1716 // घडसुण्णअण्णताए वि सुण्णता का घडाधिया सोम्म ! / एकत्ते घडयो च्चिय ण सुण्णता णाम घडधम्मो।।१७२०।। विण्णाणवयणवादीणमेगता तो तदत्थिता सिद्धा। अण्णत्त अण्णाणी गिन्वयणो वा कधं वादी / / 172 / / 1. दीहहुस्सेसु ता० / 2. व मु० को। 3 हुस्सा -ता० / 4. सा भावो ता० / 5. हुस्सं ता०। 6. तहं मु०, नहं को० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org