________________ गणधरवाद की गाथाएँ 225 विण्णाणघणादीणं वेदपताणं पदत्थमविदंतो। देहाणण्णं मण्णसि ताणं च पताणमयमत्थो // 1685 / / *छिण्णम्मि संसयम्मी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं / सो समणो पव्व इतो पंचहि सह खंडियसएहिं // 1686 / / [4] *ते पव्वइते सोतु वियत्तो पागच्छति जिणसगासं / वच्चामि ण वंदामि वंदित्ता पज्जुवासामि / / 1687 / / *आभट्ठो य जिणेणं जातिजरामरणविप्पमुक्केणं / गामेण य गोत्तेण य-सव्वण्णू सव्वदरिसी रणं / / 1688 / / *कि मण्णे पंचभूता अत्थि व रणत्थि त्ति संसयो तुज्झ / वेतपताण य अत्थं ण याणसी तेसिमो प्रत्थो // 1686 / / भूतेसु तुज्झ संका सुविणय-मायोवमाइ होज्ज त्ति / रण वियारिज्जताइ भयन्ति जं सव्वधा जुत्तिं // 1660 / / भूतातिसंसयातो जीवातिसु का कध त्ति ते बुद्धी / तं सव्वसुण्णसंकी मण्णसि मायोवमं लोयं // 1661 / / जध किर ण सतो परतो गोभयतो गावि अण्णतो सिद्धी / भावारणमवेक्खातो वियत्त ! जध दीह-हस्साणं / / 1662 / / अत्थित्त-घडेकाणेकता य सव्वेकदादिदोसातो। सव्वेऽभिलप्पा वा सुण्णा वा सव्वधा भावा / / 1663 / / जाताजातोभयतो रण जायमारणं च जायते जम्हा / अरणवत्थाभावोभयदोसातो सुण्णता तम्हा // 1664 / / हेतू-पच्चयसामग्गिवीसु भावेसु णो य जं कज्ज / * दीसति सामग्गिमयं सव्वाभावे ण सामग्गी // 1665 / / 3. किं मगे प्रत्थि भूया उदाहु नत्थि 1. तमत्थ-मु० को। 2. देखें, गाथा 16091 को मु०। 4. दोह-हुस्साणं ता० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org