________________
प्रस्तावना
147
मरण-काल के समय के कर्म के आधार पर ही शीघ्र नया जन्म प्राप्त होता है । अभ्यस्त कर्म इन तीनों के अभाव में ही फल दे सकता है, ऐसा नियम है ।
बौद्धों ने पाक-काल की दृष्टि से कर्म के जो चार भेद किये हैं, उनकी तुलना योग-दर्शन सम्मत वैसे ही कर्मों से की जा सकती है। दृष्ट जन्न-वेदनीय--जिसका विपाक विद्यमान जन्म में मिल जाता है । उपज्ज-वेदनीय--जिसका फल नवीन जन्म में प्राप्त होता है । जिस कर्म का विपाक न हो, उसे अहो-कर्म कहते हैं । जिसका विपाक अनेक भवों में मिले, उसे अपरापरवेदीय कहते हैं।
__ बौद्धों ने पाकस्थान की अपेक्षा से कर्म के ये चार भेद किए हैं---अकुशल का विपाक नरक में, कामावचर कुशल-कर्म का विपाक काम सुगति में, रूपावचर कुशल-कर्म का विपाक रूपि-ब्रह्मलोक में तथा अरूपावचर कुशल-कर्म का विपाक अरूपलोक में उपलब्ध होता है । (14) कर्म की विविध अवस्थाएँ :
__ यह लिखा जा चुका है कि कर्म का प्रात्मा से बन्ध होता है, किन्तु बन्ध होने के बाद कर्म जिस रूप में बद्ध हुअा हो. उसी रूप में फल दे, ऐसा नियम नहीं है, इस विषय में अनेक अपवाद हैं। जैन-शास्त्रों में कर्म की बन्ध आदि दस दशानों का इस प्रकार वर्णन किया गया है :
1. बन्ध --प्रात्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध होने पर उसके चार प्रकार हो जाते हैंप्रकृति-बन्ध, प्रदेश-बन्ध, स्थिति-बन्ध और अनुभाग-बन्ध । जब तक बन्ध न हो, तब तक कर्म की अन्य किसी भी अवस्था का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।
2. सत्ता-बन्ध में पाए हुए कर्म-पुद्गल अपनी निर्जरा होने तक आत्मा से सम्बद्ध रहते हैं, इसे ही उसकी सत्ता कहते हैं । विपाक प्रदान करने के बाद कर्म-पुद्गलों की निर्जरा हो जाती है। प्रत्येक कर्म अबाधाकाल के व्यतीत हो जाने पर ही विपाक देता है । अर्थात् अमुक कर्म की सत्ता उसके अबाधाकाल तक होती है ।
___3. उद्वर्तन अथवा उत्कर्षरण-प्रात्मा से बद्ध कर्मों की स्थिति और अनुभाग-बन्ध का निश्चय बन्ध के समय विद्यमान कषाय की मात्रा के अनुसार होता है, किन्तु कर्म के नवीन बन्ध के समय उस स्थिति तथा अनुभाग को बढ़ा लेना उद्वर्तन कहलाता है।
4. अपवर्तन अथवा अपकर्षण--कर्म के नवीन बन्ध के समय प्रथम-बद्ध कर्म की स्थिति और उसके अनुभाग को कम कर लेना अपवर्तन कहलाता है।
उद्वर्तन तथा अपवर्तन की मान्यता से सिद्ध होता है कि कर्म की स्थिति और उसका भोग नियत नही है । उनमें परिवर्तन हो सकता है। किसी समय हमने बुरा काम किया, किन्तु बाद में यदि अच्छा काम करें तो उस समय पूर्व-बद्ध कर्म की स्थिति और उसके रस में कमी
I अभिधम्मत्थसंग्रह 5.19; विसुद्धिमग्ग 19.15 2. विसुद्धिमग्ग 19.14; अभिधम्मत्थसंग्रह 5.19 3. अभिधम्मत्थसंग्रह 5.19
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org