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________________ १. २५. ३ ] हिन्दी अनुवाद २३. राजा जसबंधुर तथा राजकुमार यशोधका वर्णन उस उज्जयिनी नगरीमें यशसे समृद्ध यशबंधुर नामक प्रसिद्ध राजा राज्य करते थे। उनके कुलके अलंकार रूप पुत्र यशोघ थे, जो मानो, साक्षात् क्षत्रियधर्म एक योद्धाका रूप धारण कर उपस्थित हुआ हो । वे मानो गुणों के सम्मेलन थे, तपके प्रभाव थे। पुण्यके पुंज थे एवं कलाओंके समूह थे । वे मानो कुलके भूषण और यशके निधान थे। मानो वे न्यायके मार्ग और पृथ्वीके सूर्य थे। पापके आग्रह रूप ग्रहको दूर करनेके लिए वे मानो एक विद्यामणि थे व दीन और अनाथोंके लिए चिन्तामणिके समान थे। शत्रुरूपी पर्वतके शिखरको नष्ट करनेके लिए वज्रपात तथा माण्डलिकोंके मस्तक-चूड़ामणि सदृश थे। उनकी पत्नी अजितांग राजाकी पुत्री चन्द्रमती देवी थी, जिसके नेत्र नये कमलोंके सदृश और मुख चन्द्रवत् था। वह मानो कामदेवको युक्ति थी। कामकी दीप्ति थी, कामकी कोति और कामकी शक्ति, कामकी बाण-पंक्ति तथा काम-रूपी हस्तिको वशीभूत करनेके लिए वीणातन्त्री थी। यशोधरने राजपुर नरेशसे कहा कि मैं उसी महासती चन्द्रमती देवोका पुत्र हूँ, जैसे कविको मतिसे उत्पन्न काव्यार्थ । स्वजनों द्वारा वर्णित और रत्नोंसे भूषित मैं अपनी जननीसे उसी प्रकार उत्पन्न हुआ जैसे कि नये मदन-रससे परिपूर्ण फूलसे योवन-रूपी वृक्षके फलों का गुच्छा उत्पन्न होता है ।। २३ ॥ २४. यशोधरका कुमार काल मैं बालोचित लीलाओं और क्रीड़ाओंमें रमण करने लगा। मुझे गुणोंकी ओर प्रेरित किया जाता था और दोषोंसे निवारण । मैं अपने पिता तथा उपाध्याय द्वारा पढ़ाया जाने लगा और उन्होंने मुझे अपने वशमें रहने तथा भले प्रकार विनयकी शिक्षा दी। मैंने अक्षर लिखना सीखा तथा स रे ग म प ध नि इन सप्त स्वरोंका ज्ञान भी सीखा। मैंने फलों-फूलों व पत्तोंको कलात्मक ढंगसे नाना प्रकार काटना सीखा तथा शिलाओंपर लेप करना एवं काष्ठको नाना वस्तुएँ बनाना भी सोखा । मैंने व्याकरण, नाटक, नवरस तथा छन्द, अलंकार और ज्योतिषका भो ज्ञान प्राप्त किया। मैंने हाथियों एवं घोड़ोंको सवारी सीखी और नाना अस्त्र-शस्त्र चलाना भी। मैंने अलौकिक काव्योंका अवलोकन भी किया तथा समस्त विज्ञान भी सीखे। इस प्रकार क्रमशः मुझे लावण्य पूर्ण तारुण्य प्राप्त हुआ। किन्तु मैं यह नहीं जानता था कि विधिने मेरे भाग्यमें क्या लिखा है। मैं प्रौढ़त्वको प्राप्त हुआ और मेरे समस्त अंग परिपुष्ट हो गये, मानो मैं अंगधारो स्वयं अनंग ( कामदेव ) था। इस प्रकार समस्त कलाओंसे सम्पूर्ण तथा दुर्नयका विनाश करता हुआ यशोधर कुमार निर्मल चित्तसे अपने समवयस्क मित्रों सहित उस विशाल तथा उत्तम शालाओंसे युक्त नगरमें क्रीड़ा करने लगा ॥२४ ।। २५. यशोधरके विवाहका प्रस्ताव उसी समय यहाँ कृथकौशिक (विदर्भ ) देशसे वहाँका राजमन्त्री वाहनों आदि सहित चलकर कितने ही दिनोंमें उस रत्नोंकी खान एवं तोरणोंसे मण्डित उज्जयिनी नगरीमें पहुंचा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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