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________________ १. ११.९ ] हिन्दी अनुवाद १३ afrat ज्वाला निकल रही थी। उसकी लपलपाती हुई जीभ रक्त से ओत-प्रोत थी । उसके कपोल चर्बीको कर्दमके लेपसे अंकित थे । उसकी करधनी घोनस जातिके विकराल सर्पकी थी जो उसके पैरों तक लटक रही थी । उसका शरीर - श्मशानकी धूलिसे धूसर हो रहा था । देहमें मांस नहीं था, केवल चर्म और अस्थियाँ शेष थीं, तो भी वह भयंकर था । उसके सिरके केश कर्कश ऊपरको उठे हुए अग्निज्वाला के समान थे । उसकी भुजाओंके अग्र भाग मृत मनुष्योंकी आंतोंके पुजसे भूषित थे । उसके द्वारा अनेक जीववर्ग त्रासित व पाशबद्ध किये गये थे। वह निन्दनीय मार्गके समान निरस्त और दूषित थो। वह नग्ना, दुश्चारिणी और विचारहीन थी । उसके नेत्र गुंजाके समान लाल दारुण और चपल थे । उसका मुख माँसके ग्रास निगलने के लिए खुला हुआ था । वह नर-कंकाल, कपाल और त्रिशूल धारण किये हुए थी । जो साक्षात् मारी ही है, उसका क्या वर्णन करूँ । और वह राजा मारिदत्त भी अज्ञानी, कुलिंग और कुदेवोंका भक्त तथा मारणशील ( हिंसक स्वभावका ) था । उस रुधिरसे अर्चित चक्र, शूल, सर्प और खड्गको धारण करनेवाली कात्यायनी देवीके दर्शन करके राजाने अपने विमल स्वभावसे भाव सहित उसका जयकार किया और कहा, हे परमेश्वरी, मेरे पापोंका हरण कर ||९| १०. बलिके निमित्त पशुओं का संग्रह बकरोंके जोड़े, सूकर, रीछ, हरिण, कुंजर ( हाथी ), व्याल, वृषभ ( बैल ), रासभ ( गदहे ), मेष ( मेढ़ा ), महिष ( भैंसा ), रोष, घोड़ा, ऊँट, भालू, सिंह, सरभ, गेंडा, व्याघ्र, शश ( खरगोश ), चीता, तथा इसी प्रकार अन्य बहुत से चौपाये एकत्र किये गये । उसी प्रकार कंक, कुरर, मोर, हंस, बगुला, चकोर, घूक ( उल्लू ), सरड, काक, कोड़ो, पुंसकोकिल आदि पक्षी तथा कूर्म मगर, गोह, ग्राह, मत्स्य, झष तथा जाने हुए जोव देवीके सम्मुख लाये गये । रोहू आदि जलचर ये समस्त मूर्ख मनुष्य दूसरे जीवोंको मारकर अपने जीवनको अभिलाषा करता है और शान्ति चाहता है । उसी प्रकार वह राजा नाना प्रकारके प्राणियों के जोड़े तथा सभी प्रकारके पक्षी उस देवीके आगे मारने लगा ||१०|| 1 ११. बलिहेतु नर- मिथुनको खोज विष के भोजनसे क्या मनुष्य जो सकते हैं ? क्या गौके सींगोंसे दूध निकल सकता है ? क्या पाषाणके शिलातलपर धान्य उगाये जा सकते हैं ? नीरस भोजन द्वारा कहीं देहकी कान्ति बढ़ायी जा सकती है ? उपशमसे रहित मनुष्य में कहीं क्षमा आ सकती है ? दूसरे जीवोंको मारने वाले मनुष्यको कहीं शान्ति मिल सकती है ? उस अज्ञानी राजाने अपने हाथ में नंगी तलवार लिये हुए उन बड़े और छोटे प्राणियोंके बहुतसे एकत्र किये हुए जोड़ोंको देखकर अपने लाल तथा व्याकुल नेत्रयुगल सहित कहा—रे सैनिकप्रवर चण्डकमं, तू तुरन्त ही एक अच्छे मनुष्यके जोड़े कोला, क्योंकि मैं यहाँ सर्वप्रथम उसका ही बलिदान करूंगा । राजाका यह आदेश पाकर उस राज-सेवक ने अपने हाथ जोड़े और अपने निजी क्रिकरोंको उस कार्य हेतु भेजा । वे उस नगर के बाह्य भागों में तथा नदी, वृक्ष व लताओंके ठहरने योग्य स्थानों में योग्य नर- मिथुनकी खोज करने लगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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