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________________ ४. २३.९] हिन्दी अनुवाद २२. राजा मारिदत्तका पश्चात्ताप व दीक्षाकी याचना तथा सुदत्त आचार्यका आगमन राजाने कहा-हे परमेश्वर, एक कृत्रिम कुक्कुटका हनन करनेसे आपने जन्म-जन्मान्तरोंमें भ्रमण किया और इतना दारुण दुःख भोगा, किन्तु मैंने जितने जीव समूहोंका संहार किया है, उन्हें कौन जानता है ? मैं तो ऐसे रोरव अन्धकारमें गिरूँगा जहाँ केवल नारकी जीवोंका 'मारोमारो' शब्द गूंज रहा है। अतएव हे देव, मुझे इस पापसे निवृत्त कीजिए। मैंने अपने मनमें निर्ग्रन्थ वृत्तिका अवलम्बन कर लिया है। इसपर संसार-वासरूपी बन्धनके वेष्टनसे मुक्त हुए उन कुसुमावलिके पुत्र क्षुल्लकने कहा-आओ चलें। जिनेन्द्र के धर्मको शिक्षा और दीक्षा तो तुम्हें हमारे गुरु प्रदान करेंगे । क्षुल्लकके इस वचनसे राजा विस्मित हो उठा और उसे मनोहर आनन्द उत्पन्न हुआ। उसने विचार किया कि एक तो मैं ही लोकमें महाघं और मनुष्यों द्वारा अन्दनीय है, सामन्त मन्त्रियों तथा माण्डलिकों द्वारा पूज्य हैं। फिर मेरी भी पूजनीय कुलदेवी थी और वह भी इस क्षुल्लककी दासी हो गयो। अब यदि इस क्षुल्लकका भी कोई और एक गुरु है, तब तो सिद्ध होता है कि तपस्वियोंका इस जगमें भारी माहात्म्य है। क्षुल्लकने राजा मारिदत्तके मनकी बात जानकर उसका सम्बोधन किया। इसी बीच वहां आचार्य सुदत्त आ पहुँचे। वे अवधिज्ञानी थे। देवों और मनुष्यों द्वारा वन्दनीय थे। मदरूपी शत्रुके विजेता तथा त्रिलोक-पूज्य थे। वे मोह विनाशक, महामतिमान्, गुणोंसे समृद्ध तथा सातों हो श्रेष्ठ ऋद्धियोंसे सम्पन्न थे । उन्होंने नाना प्रकारके कर्मोंको जर्जरित कर दिया था और वे तपमें ऐसे सुप्रतिष्ठित थे मानो साक्षात् दविध धर्म ही हों। कुसुमावलिके पुत्र अभयरुचि क्षुल्लकने पृथ्वी पर घुटने, सिर और भुजाएं फैलाकर अपने गुरुको वन्दना की। राजाने भी सैकड़ों भवोंका नाश करनेवाले गुरुराजके चरण-कमलोंमें नमन किया। तब उन जगपरमेश्वर संघनायक आचार्य सुदत्तने 'तुम्हारी धर्मवृद्धि हो', ऐसा आशीर्वाद दिया। तब सन्तुष्ट मनसे राजाने उनका शिष्य बननेको अपनी इच्छा प्रकट की ।।२२।। २३. राजा द्वारा पूर्वभवों सम्बन्धी प्रश्न, सुदत्तमुनिका उत्तर, राजा यशोधर और रानी चन्द्रमतिका पूर्वभव, गन्धर्वदेश, गन्धर्वगिरि, गन्धर्वपुर, वैधव्य राजा, विन्ध्येश्वरी रानी, गन्धर्वसेन पुत्र तथा गन्धर्वश्री पुत्री। राजा मारिदत्तने हर्षित होकर नमन करते हुए कहा-हे देव, अपने पूर्वभव, गोवर्धन सेठके भवान्तर तथा मेरे भवान्तर जैसे निरन्तर हुए व योगेश्वर भैरवानन्दका पूर्वभव, चण्डमारी देवीका, यशपूर्ण यशोघ राजाका, चन्द्रश्री चन्द्रमति आजीका, यशोधर राजाका, अवगुणोंसे . पूर्ण अभय महादेवीका, लक्ष्मीके सहायक यशोमतिका, सुन्दरदेह कुसुमावलीका, माहेन्द्र तुरगका और उस अनार्य कब्जका, इन सबका पर्वभव प्रकट कोजिए । इसपर अवधिज्ञानके धारी मनिराज बोले-एक गन्धर्व नामका सुप्रसिद्ध समृद्धिशाली देश है, जहाँकी भूमि कणोंसे भरे हुए शालिक्षेत्रोंसे पूरित है और जहां पके हुए धानकी झंकारका मधुर स्वर सुनाई पड़ता है । उसी देशमें गन्धसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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