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४. २०. २ ]
हिन्दी अनुवाद
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करो । हे देव, मुझे तीव्र तपको दीक्षा प्रदान करो। में उसका पालन करूंगी और अपने समस्त हिंसात्मक दुष्कर्मका अपहरण करूंगी । इसपर अभयरुचि क्षुल्लकने कहा - हे विशाल रमणी, पाटल के समान कोमल, गजके समान मन्दगामिनी, सुरकामिनी सुनो। तुम्हारे लिए धर्ममें तपका विधान नहीं है और तुम एकमात्रके लिए नहीं, किन्तु उन समस्त बासठ प्रकारके देवों में भी तप ग्रहणको व्यवस्था नहीं है । इन देवोंका औपपादिक ( गर्भ रहित ) जन्म होता है, उनके पूर्व पुण्यका विपाक क्रमसे विकसित होता है, जिनके मांस, चर्म, रोम व अस्थि नहीं होते; जिनका शरीर पार्थिव धातुओंरहित होते हुए भी देदीप्यमान होता है, जो अपने साथ स्वाभाविकभावसे उत्पन्न मुकुट और कुण्डलधारी होते हैं, जिनके शरोरसे मन्दार पुष्पों के परागकी सुगन्ध निकलती है; जो अपने शरीरस्पर्श, रूप और ध्वनिमें अनुरक्त होते हैं; प्रतिकार या अप्रतिकार जिनके मानसिक क्रियामात्रसे होता है; जो बहुत धन व हाथी आदि वाहनों की इच्छा करते हैं, और जिनकी कामवासना उत्तरोत्तर बढ़ती है; जिनकी आयु दस सहस्र वर्ष या एक वा अनेक पल्यों तथा सागरोपमोंकी होकर जो दीर्घकाल तक जीते हैं । इस प्रकारकी समस्त देव योनियों में तप करनेका विधान नहीं है ।
उसी प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा तृण और वृक्षरूप वनस्पति कायधारी जो जीव संसारमें भ्रमण कर रहे हैं, जिनके चार प्रकारके प्राण होते हैं, किन्तु जो नितान्त ज्ञानहीन होते हैं ऐसे एकेन्द्रिय जीवोंके भी दीक्षा नहीं होतो ॥ १८ ॥
१९. अन्य जीव योनियोंमें संयमका अभाव
जल में डूबे रहनेवाले शंख तथा गोह व भ्रमर आदि ( दोसे लेकर चार इन्द्रिय वाले ) जीवों में विमल, असंज्ञी व संज्ञी तिर्यंचोंमें तथा, हे महाबल, सुन्दर केशधारी देवि, ऐसे जीवों में भी दीक्षाका निषेध है जो अपने नरजन्ममें परवंचनापरायण थे व झूठे तराजू, माप व अन्य उपकरण रखते थे । न्याय में झूठी साक्षी देते थे, पशुघाती व मायावी थे और, हे अम्मी, जो उन्हीं पापोंके फलसे नाना प्रकारके पशुओं में उत्पन्न हुए हैं, तथा जिन्होंने रत्नप्रभा आदि नरकों में जानेकी तैयारी कर ली है या जो उरग ( सर्पादि ) और भुजंग हुए हैं, जो बिलोंमें रहते हैं, अहि अर्थात् सर्प, अजगर व भयंकर महोरग, सरड ( छिपकली ), उन्दुर ( चूहे ), सेह और नकुलों (नेवले) में, एक खुरवाले व दो खुरवाले तथा हाथियों में, गोलाकार पैरोंवाले चौपायोंमें, नदी व समुद्रके जल में विचरण करनेवाले कच्छप, मत्स्य आदि चंचल जीवोंके रूपमें असंख्य द्वीप समुद्रोंके निवासी हैं । इन सब तिर्यंच जीवों में तथा चंचुजोवो पक्षियों में तप नहीं है ।
जो अपने मनुष्यभव में स्त्री, बाल, वृद्ध व ऋषियोंके घातक थे, परस्त्रियोंके लालसी व्यभिचारो थे, मधु, मद्य व मांसरसके लम्पट थे, जो निरन्तर प्रचण्ड क्रोध किया करते थे, और जिनेन्द्र देवके निन्दक थे; और इस कारण जिन्होंने घर्मा आदि नरक लोकोंको प्राप्त करके शरीर और मनसे उत्तरोत्तर अशुभ आचरण किया है; परस्पर सैकड़ों आघातों द्वारा जर्जर हो रहे हैं; सप्तधनुष प्रमाण त्रिरत्नी व छह अंगुल प्रमाण तथा उत्तरोत्तर दूना दूना देह-प्रमाण प्राप्त किया है; जिन्हें आहार संचित करने व पृथ्वीतलपर विहार करने में अनन्त दुःख हुआ है, व जहाँ परमाणुओं के मिलने तथा नेत्र निमीलनमात्र काल भी सुख नहीं है; ऐसे नरकवासी जीवों के भो तप नही होता ||१९||
२०. नरकों, भोगभूमियों व अनार्य-भूमिखण्डोंमें तपका अभाव व आर्यखण्डों में सद्भाव
जिनके प्रहारसे कम्पित शरीर के खण्ड-खण्ड कर डालनेपर भी पुन: मेल हो जाता है, तथा खड्गसे छिन्न व शूलसे भिन्न किये जानेपर भी जिनमें जीवन बना रहता है, ऐसे
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