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२. २६. २ ]
हिन्दी अनुवाद
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गये जो मुझे इस प्रकार मार रहे थे जैसे शत्रु मण्डलीक । फिर तीखे अंचार परोसे गये जो मुझे ऐसे लगे मानो शत्रुओंने अपने तीक्ष्ण शस्त्र छोड़े हों। फिर विषैले लड्डू कैसे परोसे गये जैसे मानो वे मेरे घातक भृत्य हों । तत्पश्चात् जैसे किसी अन्यको सुनाई न पड़े वैसे फुसफुसाकर मुस्कराती हुई देवीने मुझसे कहा, "ये लड्डू मेरी माताने पठाये हैं और मैंने इन्हें बड़े प्रेमसे तुम्हारे लिए रखे | मैंने अपनी प्रियाके वचनका उल्लंघन नहीं किया और हम दोनों माता-पुत्रोंने साथ ही उस विष मिश्रित भोजनको जीम लिया । विषवेगसे हमारा शरीर घूमने लगा । हमने मूर्च्छाके वश गिरते-गिरते वैद्य, वैद्य चिल्लाया जिसपर मेरी भार्या हे नाथ, हे नाथ, कहती हुई रोने लगी ।
जब में पृथ्वीपर लेटा था तो वह मेरे उरुस्थलपर चढ़ बैठी और अपना केश-कलाप फैलाकर मेरे कोमल गलेको दाँतोंसे काटकर उसने मुझे मार डाला ||२४||
२५. मेरी मृत्यु पुत्रका शोक व मन्त्रियोंका सम्बोधन
जो कोई स्वेच्छाचारिणी स्त्रीपर विश्वास करता है वह मनुष्य मेरे समान कैसे जीवित रह सकता है ? तुरन्त ही मेरी मृत्युको बात मेरे उस पुत्रने सुनी जो सज्जनोंके मन और नेत्रोंको आनन्ददायी था । वह कम्पित होकर भूमिपर गिर पड़ा, जेसे वज्रके आघातसे कोई महान् पर्वत धराशायी हुआ हो । मूर्च्छा हटते ही वह राजकुमार धाड़ मारकर रोने लगा । हाय पिता, तुम्हारे बिना मेरे लिए यह जगत् अन्धकारमय हो गया । वह शोक करने लगा । हाय तात, तुम्हारे बिना मेरी छत्रछाया मिट गयो । तुम्हारे बिना पृथ्वीमण्डल शून्य हो गया । अब इस अवन्तिदेशका कौन राजा, कौन स्वामी रहा। बिना तातके इस राज्यपर वज्र पड़े । बिना तातके मुझे यह राज्य नहीं सुहाता । इस दुःख समूहकी खानरूप राज्यको भाड़में जाने दो, चूँकि यह तत्काल परलोकके लिए हानिकारक है । राजाके इस प्रकार दुःखी होकर अश्रुधारा बहानेपर मन्त्रियोंने उनका सम्बोधन किया । हे राजन, इस असार संसार में जितने राजा-महराजे व्यतीत हो चुके उनमें कितने गिनावें ? नल, नहुष, सगर, व मान्धाता जैसे सम्राट् हुए वे भी कालके वश इस पृथ्वीपर समाप्त हो गये । यहाँ जगत् प्रसिद्ध महान् बलशाली अतिबलको भी कालने खा लिया । जो राजा वेणु लोगोंको आलेखन करके मारता था वह भी वेणु ( बाँस ) के समान कालाग्निमें भस्म हो गया । जो बड़े-बड़े महापुरुष नारायण, बलभद्र, कुलकर व चक्रवर्ती हुए वे समस्त बलशाली भी काल द्वारा भक्षित हो गये । यह जानकर शोक क्यों किया जाये ? हे देव, इस संसारकी यह स्वाभाविक अवस्था है । मन्त्रियोंके ये वचन सुनकर राजाने अपने पिता और उनकी जननी, उन दोनोंके शवोंको पटह, शंख और नगाड़ोंकी ध्वनि सहित वहाँसे उठवाये । उनकी अर्थीपर चंदोवा व कदलीदण्ड लगाये गये । समस्त बान्धवजनों के मुख उदासीन हो गये ।
राजा उदास व दुःखी मनसे बार-बार मूच्छित हो जाता था । वह अपने मनमें तप्त होकर बार-बार कह उठता कि पिताके बिना कैसे जिया जायेगा ||२५||
२६. श्मशान यात्रा, परिजनोंकी शोकावस्था तथा राजा द्वारा दान करना
राजमहलके अन्तःपुरको स्त्रियाँ दुःखके वशीभूत हुईं, गिरती और उठती वहाँसे निकलीं । वे राजाको अर्थी के पीछे-पीछे कैसी चल रही थीं जैसे मानो पूर्णिमा चन्द्रके साथ तारा-पुंज
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