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________________ १. २९. १५ ] हिन्दी अनुवाद से दण्डित किया। मैंने वार्ता विद्या (अर्थशास्त्र) के अनुसार धन-संचय किया और सातों व्यसनोंको नियन्त्रित किया। मैंने क्रोध, लोभ, माया और मानका त्याग कर दिया तथा कामका सेवन विनोद मात्रके लिए किया। मैंने दुर्जनोंकी संगतिका दूरसे ही सर्वथा परित्याग किया। एवं मन्त्र द्वारा शत्रुके कार्योंका पता लगाया। विग्रह ( युद्ध), सन्धान ( सन्धि ), यान ( आक्रमण) और स्थान (आसन ), संशय तथा द्वैधीकरण इन सब राजनीतिके गुणों का ज्ञान मेरे समकक्ष स्फुरायमान हो गया। मेरे सेवकगण मेरे भयसे थर्रा जाते थे। जो मुझे नमन करते थे वे सुखसे जीते थे और जो मुझसे पलायन करते थे वे वन में जाकर बसते थे। जो खल मेरी भूमिको हड़पनेको इच्छा करते थे और विडम्बित होकर मुझसे युद्ध में आ भिड़ते थे वे सरलतासे बिजलीके समान क्षणभंगुर सिद्ध होते थे। मैंने अपनी दुर तलवारको धारसे शत्रु-मण्डलके राजाओंको युद्ध में दण्ड दिया और अपने दिशाओंमें फैलते हुए स्फुरायमान तेजसे उन्हें पराजित किया। ऐसा पुष्पदन्त कहते हैं ॥२९॥ इति महाकवि पुष्पदन्त विरचित महामन्त्री नन्नके कामरणरूप यशोधर महाराज चरित नामक महाकाव्यमें यशोधरका राजपबन्ध नामक प्रथम सन्धि परिच्छेद समाप्त ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001841
Book TitleJasahar Chariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorParshuram Lakshman Vaidya, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages320
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size22 MB
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