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________________ प्रशस्तिपाठः] [ ३९५ चार्वाकादिमतप्रवादितिमिरोष्णांशोर्मुनीन्द्रप्रभोः ___ सूरिश्रीजिनचन्द्रकस्य जयतात् संघो हि तस्यानघः ।। १६ ।। तच्छिष्या बहुशास्रज्ञा हेयादेयविचारकाः । शमसंयमसम्पूर्णा मूलोत्तरगुणान्विताः ॥ १७ ॥ जयकीर्तिश्चारुकीतिर्जयनन्दी मुनीश्वरः । भीमसेनादयोऽन्ये च दशधर्मधरा वराः ॥ १८ ॥ युग्मं ।। अस्ति देशव्रताधारी ब्रह्मचारी गणाग्रणीः । नरसिंहोऽभिधानेन नानाग्रन्थार्थपारगः॥१६॥ तथा भूरिगुणोपेतो भूरानामा महत्तमः । श्रीमानश्वपतिश्चान्यः सुमतिर्गुरुभक्तिकृत् ॥ २० ॥ अन्यो नेमाभिधानोऽस्ति नेमिर्द्धर्मरथस्य यः। परस्तीकमसंज्ञश्च ज्ञातयज्ञोऽस्तमन्मथः ।। २१॥ भवांगभोगनिविण्णस्तिहणाख्योऽपरो मतः । सम्यक्त्वादिगुणोपेतः कषायदववारिदः ॥ २२॥ ढाकाख्यो ब्रह्मचार्यस्ति संयमादिगुणालयः। सर्वे ते जिनचन्द्रस्य सूरेः शिष्या जयन्त्विह ॥ २३ ॥ श्रीमान् पंडितदेवोऽस्ति दाक्षिणात्यो द्विजोत्तमः। यो योग्यः सूरिमंत्राय वैयाकरणतार्किकः ॥ २४ ।। अग्रोतवंशजः साधुर्लवदेवाभिधानकः । तत्सुतो धरणः संज्ञा तद्भार्या भीषुही मता ॥ २५॥ नष्ट करने के लिए सूर्य थे तथा मुनिराजों के प्रभु थे ऐसे सत्पुरुष जिन, जिनचन्द्र भट्टारक की सम्यग्ज्ञान के दान से उत्पन्न चन्द्रोज्ज्वल कीर्ति पृथ्वीतल पर फैल रही थी, उन आचार्य जिनचन्द्र भट्टारक का निष्कलंक संघ जतवन्त प्रवर्ते ॥१६॥ उनके जयकीति, चारकोति, मुनिराज जयनन्दी तथा भीमसेन आदि अन्य अनेक शिष्य थे, जो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता थे, हेय-उपादेय का विचार करने वाले थे, शान्ति तथा संयम से परिपूर्ण थे, मूल एवं उत्तर गुणों से सहित थे और दशधर्मों के उत्कृष्ट धारक थे ।।१७-१८।। उनके शिष्यों में कुछ देशव्रत के धारक भी थे, जैसे अपने गण में प्रमुख तथा नाना ग्रन्थों के अर्थ के पारगामी नरसिंह, बहुत भारी गुणों से सहित, श्रेष्ठतम भूरा, श्रीमान् अश्वपति, गुरुभक्त सुमति, धर्मरूपी रथ के नेमि स्वरूप नेम, यज्ञ के ज्ञाता मदनविजयी तीकम (टीकम), संसार, शरीर और भोगों से विरक्त तिहुण, सम्यक्त्व आदि गुणों से सहित एवं कषाय रूप दावानल को शान्त करने के लिए मेघ, तथा संयमादि गुणों के घर ब्रह्मचारी ढाका । जिनचन्द्र आचार्य के ये सब शिष्य यहाँ जयवन्त रहें ॥१९-२३॥ श्रीमान पण्डित देव दाक्षिणात्य उत्तम ब्राह्मण थे, जो सुरिमन्त्र के लिए योग्य थे। तथा व्याकरण और तर्क शास्त्र के ज्ञाता थे ॥२४॥ अग्रोतवंश में उत्पन्न लवदेव नाम के एक सज्जन थे। उनके धरण नाम का पुत्र था तथा धरण की स्त्री का नाम भीषुही था ॥२५॥ उमके मोह नाम का पण्डित तथा श्रावक के व्रतों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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