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________________ परिशिष्ट १ [मूलाचार का यह संस्करण दि० जैन सरस्वती भण्डार धर्मपुरा, दिल्ली की मुद्रित प्रति के आधार पर संशोधित, सम्पादित तथा अनूदित किया गया है। उस प्रति के अन्त में ७० श्लोकों की एक प्रशस्ति भी मुद्रित है जो भुतपंचमी व्रत के उद्यापन के समय मधावी पण्डित द्वारा रची गयी थी । काव्य-रचना सुन्दर है अतः उसका हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है। यह प्रशस्ति वि० संवत् १५१६ में निर्मित हुई थी। ] अथ प्रशस्ति-पाठः प्रणमामि महावीरं सिद्धं शुद्धं जिनेश्वरम् । यस्य ज्ञानाम्बुधौ भाति जगद्विन्दूपमं स्थितम् ॥ १ ॥ कृतात्मनो जना यत्र कर्म प्रक्षिप्य हेलया । रमन्ते मुक्तिलक्ष्मीं तज्जैनं जयति शासनम् ॥ २ ॥ जयन्तु गौतमस्वामिप्रमुखा गणनायकाः । सूरयो जिनचन्द्रान्ताः श्रीमन्तः क्रमदेशकाः ॥ ३॥ वर्षे षडेकपंचैक (१५१६) पूरणे विक्रमाद्गतेः । शुक्ले भाद्रपदे मासे नवम्यां गुरुवासरे ॥ ४ ॥ श्रीमद्वट्टेरकाचार्यकृतसूत्रस्य सद्विधेः । मूलाचारस्य सद्वृत्तेर्दातुर्नामावलीं ब्रुवे ॥ ५ ॥ अथ श्रीजम्बुपपदे द्वीपे क्षेत्रे भरतसंज्ञके । रुजांगलदेशोऽस्ति यो देशः सुखसम्पदाम् ।। ६ । तत्रास्ति हस्तिना नाम्ना नगरी मागरीयसी । शान्तिकुंथ्वरतीर्थेशा यत्रासन्निन्द्रवंदिताः ॥ ७॥ जिनके ज्ञान सागर में स्थित जगत् बिन्दु के समान सुशोभित होता है उन सिद्ध, शुद्ध महावीर जिनेन्द्र को मैं प्रणाम करता हूँ | ॥ १॥ जिसमें कुशल मनुष्य - आत्मज्ञान से युक्त जन - अनायास ही कर्मक्षय कर मुक्तिलक्ष्मी के साथ क्रीडा करते हैं वह जैन शासन जयवन्त प्रवर्तता है - सर्वोत्कृष्ट है ॥२॥ गौतम स्वामी आदि गणधर और कालक्रम से देशना करनेवाले जिनचन्द्र पर्यन्त के श्रीमान् आचार्य जयवन्त प्रवर्ते || ३ || विक्रम से १५१६ वर्ष व्यतीत हो जाने पर भाद्र मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि गुरुवार के दिन, मुनियों के आचार का सम्यक् प्रकार से निरूपण करनेवाले, तथा समीचीन आचार्यवृत्ति - वसुनन्दि आचार्य विरचित संस्कृत टीका से सहित, श्रीमान् वट्ट ेरक आचार्य रचित गाथा सूत्रों से सहित मूलाचार की प्रति का दान करनेवाले - दाता की नामावली कहता हूँ ।।४-५॥ Jain Education International अथानन्तर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सुखदायक सम्पदाओं का निवासभूत जो कुरुजांगल नाम का देश है उसमें लक्ष्मी से श्रेष्ठ हस्तिनापुर नाम की वह नगरी है जिसमें इन्द्रों के द्वारा वन्दित शान्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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