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________________ .. २६२] [ मूलाचारे सर्वपृथिवीषु नारकाणां जघन्यस्थितिमायुषः प्रतिपादयन्ताह पढमादियमुक्कस्सं बिदियादिसु साधियं जहणत्तं । धम्माय वर्णावंतर वाससहस्सा दस 'जहण्णं ॥१११८॥ पढमादिय--प्रथमादिर्यस्य तत्प्रथमादिकं आयुरिति संबध्यते, उक्कस्सं-उत्कृष्ट, बिदियादिसुद्वितीयाआदिर्यासां ता द्वितीयादयस्तासु द्वितीयादिषु पृथिवीषु, साधिय-साधिक समयाधिक, जहण्णत्तं-जघन्यं तत् । प्रथमायां यदुत्कृष्टं द्वितीयायां समयाधिकं जघन्यं तदायुस्तया द्वितीयायां यदुत्कृष्टमायु रकाणां', तृती. यायां नारकाणां समयाधिकं जघन्यं तत् । तृतीयायामुत्कृष्टं यदायुश्चतुर्थ्यां समयाधिकं जघन्यं तत् । चतुर्थ्यां यत्कृष्टमायुः पंचम्यांसमयाधिकं जघन्यं तत् । पंचम्यामुत्कृष्टं यदायुःषष्ठ्यां समयाधिकं जघन्यं तत् । षष्ठयामुत्कृष्टं यदायुः सप्तयां समयाधिकं जघन्यं तत् । एवं सर्वासु पृथिवीषु सर्वप्रस्तरेषु सर्वेन्द्रकेषु योज्यं, प्रथमेन्द्रके यदुत्कृष्टमायु रकाणां द्वितीयेन्द्र के समयाधिकं जघन्यं तंत् । द्वितीयेन्द्र के यदुत्कृष्ट मायुस्तृतीयेन्द्र के समयाधिक जघन्यं तत् । एवमेकोनपंचाशदिन्द्रकेषु नेतव्यमिति । अथ केषां नारकाणां देवानां च जघन्यमायुर्दशवर्षसहस्राणीत्यत आह–धम्माय-धर्मायां सीमंतके नारके नारकाणां भवण--भवनवासिनां, वितर-व्यंतराणां, वास भावार्थ-यहाँ पर सातों नरकों के उनचास प्रस्तार के नारकियों की उत्कृष्ट आयु बतायी है तथा वहीं के श्रेणीबद्ध व प्रकीर्णक विलों के नारकियों की भी वही आयु है। यहाँ प्रस्तार को ही इन्द्रक कहा गया है। सर्वपथिवियों में नारकियों की [तथा कतिपय देवों की जघन्य आयु का प्रतिपादन करते हैं गाथार्थ-प्रथम आदि नरकों की जो उत्कृष्ट आयु है, द्वितीय आदि नरकों में वही कळ अधिक जघन्य आय है। धर्मा नामक पथिवी में तथा भवनवासी और व्यंतरों में जघन्य आय दश हजार वर्ष है ॥१११८॥ आचारवत्ति-प्रथम नरक में जो उत्कृष्ट आयु है, द्वितीय नरक में एक समय अधिक वही आय जघन्य हो जाती है। तथा द्वितीय नरक में जो उत्कष्ट आय है उसमें एक समय मिलाकर वही तृतीय नरक में जघन्य हो जाती है । तृतीय नरक में जो उत्कृष्ट आयु है उसमें एक समय अधिक करके वही चतुर्थ में जघन्य हो जाती है । चतुर्थ की उत्कृष्ट में एक अधिक करके पाँचवें में जघन्य होती है । पाँचवीं पृथिवी की उत्कृष्ट आयु में एक समय अधिक करके छठे में जघन्य हो जाती है। छठे की उत्कृष्ट में एक समय अधिक करके सातवें में जघन्य हो जाती है। इसी प्रकार से सभी नरकों के सभी प्रस्तारों के--सभी इन्द्रकों में लगा लेना चाहिए। जैसे कि प्रथम नरक के प्रथम इन्द्रक में जो उत्कृष्ट आयु है द्वितीय इन्द्रक में एक समय अधिक वही जघन्य है। द्वितीय इन्द्रक में जो उत्कृष्ट है तृतीय में एक समय अधिक वही जघन्य है। इसो तरह उनचास इन्द्रक पर्यन्त ले जाना चाहिए। पूनः किन देव और नारकियों की जघन्य आयु दश हजार वर्ष है ? धर्मा नामक प्रथम नरक के प्रथम सीमंतक इन्द्रक बिल में नारकियों की जघन्य आय १. क जहण्णा। २. कनारकान्तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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