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विषगनुरूमाणका ]
१४५ १४६-१४७ १४७-१४६ १४६-१५३ १५४-१५८
'मैं बहुत काल का दीक्षित हूँ' इसका गर्व नहीं करना चाहिए
६६७ बन्ध और बन्ध के कारणों का प्रतिपादन
६६८-६७० स्वाध्याय की उपादेयता
९७१-६७३ निद्रा-विजय और ध्यान का वर्णन
९७४-९८३ कषाय का अभाव चारित्र है
९८४-९८८ राग-द्वेष का फल और उनके कारणों से दूर रहने का निर्देश
६८६-६६५ ब्रह्मचर्य के भेद
९६६-६६७ ब्रह्मचर्य के बाधक कारण
६६८-१००० परिग्रह-त्याग का फल
१००१-१००२ नामादि निक्षेप की अपेक्षा श्रमण के भेद
१००३-१००४ । भिक्षा-शुद्धि की अनिवार्यता
१००५-१००६ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव और शक्ति को जानकर ध्यान-अध्ययन करने का निर्देश
१००७-१००८ दर्शनशुद्धि और मिथ्यात्व के कारणों का निराकरण १००६-१०१३ निर्दोष आचरण के लिए प्रश्नोत्तर और समयसार अधिकार का उपसंहार
१०१४-१०१७
१५८-१६. १६०-१११ १६१-१६२
१६४
१६५-१६६ १६६-१७०
१७१-१७४
१७५
१७६ १७७
१७८-१७६ १७६-१८०
११. शीलगुणाधिकार मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य
१०१८ शील के भेदों की उत्पत्ति का क्रम
१०१६ योगादिक के भेद व स्वरूप
१०२० पथिवी आदि के भेद व स्वरूप
१०२१ श्रमण के क्षमा आदि दश धर्म
१०२२ शील के भेदों की उत्पत्ति के निमित्त अक्षसंचार का क्रम
१०२३-१०२४ गणों की उत्पत्ति के कारणों का क्रम
१०२५ हिंसादिक के २१ भेदों का निर्देश
१०२६-१०२७ अतिक्रमण आदि चार के नामोल्लेख
१०२८ काय के दश भेद
१०२६ अब्रह्म के दश कारण
१०३०-१०३१ आलोचना के दश दोष
१०३२ प्रायश्चित्त के आलोचना आदि दश भेदों का उल्लेख १०३३ गुणों के उत्पन्न करने का क्रम
१०३४-१०३५
१८०-१८२ १८३ १८३-१८४ १८४
१८५
१८५ १८५-१८७ १८८ १८८-१८६
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