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चाओ य होइ दुविहो संगच्चाओ कलत्तचालाय उभयच्चायं किच्चा साहू सिद्धि लहू लहदि ॥१००८॥ कधं चरे कधं चिट्ठे कधमासे कधं सये। कधं भुजेज्ज भासेज्ज कधं पावं ण बज्झदि ॥१०१४॥ जदं चरे जदं चिठे जदमासे जदं सये। जदं भुजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ग बज्झइ ॥१०१५॥ जदं तु चरमाणस्स दयापेहुस्स भिक्खुणो। पावं ण बज्झदे कम्म पोराणं च विधूयदि ॥१०१६।। इत्थीसंसग्गो पणिदरसभोयण गंधमल्ल संठप्पं । सयणासणभूसणयं छठं पुण गीयवाइयं चेव ॥१०३०।। अत्थस्स संपयोगो कुसीलसंग्गि रायसेवा य। रत्ती वि संयरणं दस सील विराहणा भणिया ॥१०३१॥
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