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________________ प्रस्तावना विषय-परिचय उपशमना के दो प्रकार है - (१) करणकृतोपशमना (२) अकरणकृतोपशमना प्रस्तुत में करणकृतोपशमना का अधिकार है । करणकृतोपशना के भी दो प्रकार है। (१) सर्वोपशमना (२) देशोपशमना । (१) सर्वोपशमना में निम्न ७ अधिकार है-- (१) प्रथम सम्यस्त्व उत्पादन (२) देशपिरति प्ररूपणा। (३), सर्वविरति प्ररूपणा । (४) अनंतानुबन्धि विसंयोजना । (५) दर्शनमोहनीय क्षपणा । (२) दर्शनमोहनीय उपशमना (७) चारित्रमोहनीय उपशमना । (१) प्रथमसम्यक्त्व उत्पादन सर्वोपशमना मोहनीयकर्म की होती है। उसके योग्य जीव पञ्चेन्द्रियत्व,संज्ञित्व,पर्याप्तत रूप तीनलब्धि अथवा उपशमन लब्धि, श्रवणलब्धि तीन करण हेतु प्रकृष्ट योगलब्धि रूप तीन लब्धि से युक्त होता है। उसकी विशुद्धि अभव्यसिद्धिक की विशुद्धि से अनंतगुण विशुद्धयमान होती है, अन्यतरसाकारोपयोग में वर्तमान, विशुद्धलेश्यावाला, आयुष्यकर्म के सिवाय मातकों की स्थिति अंत:कोटा कोटी सागरोपम करके अशुभकर्मों का द्विस्थानक व शुभकमें चतुस्थानक रस बांधता है । ध्रुवबंधि एवं आयुष्यसिवाय भवप्रायोग्य परावर्तमान शुनप्रकृति बांधता है । योग के अनुसार प्रदेशबंध जघन्य मध्यय व उत्कृष्ट तीन प्रकार का होता है । एक स्थितिबंध के बाद अगला स्थिनिबंध का पल्मोपम संख्यातमागहीन हीनतर करता है । क्रमरा यथाप्रवृत्तकरण, अपूर्व करण, अनिवृत्तिकरण करके चौथी उपशन्ताद्धा को प्राप्त करता है। तीनों करणों में प्रतिसमा विशुद्धि में अनंतगुणवृद्धि होती है। प्रथम दो करणों में प्रतिममय असंख्यलोकाकाशप्रदेशप्रमाण विशुद्धिस्थान होते हैं । जघन्योत्कृष्ट विशुद्धि जानने के लिए इस प्रकार निदर्शन है--जैसे कि दो जीव एक साथ करण को प्रतिपन्न करते हैं । प्रथम की सर्वजघन्य विशुद्धि है द्वितीय की मर्वोत्कृष्ट विशुद्धि है । यथाप्रवृत्तकरण में प्रथम जीव की मजघन्य विशुद्धि से द्वितीय मभय में सर्वजघन्य विशुद्धि अनंतगुण है । इस प्रकार यथावृनकरण के संख्यातभाग पसार होने पर उससे प्रथमसमयवर्ती द्वितीय जीव की मत्कृष्ट वशुद्धि अनंतगुण । उमसे कःण के संख्यातभागोपरवर्ती प्रथम जीव की मर्वजघन्य विशुद्धि अनंतगुण है. उससे दूसरे जीव की द्वितीयसमयवर्ती उत्कृष्ट विशुद्धि अनंतगुण है, उमसे प्रथम जीव की अगले ( Nest ) समय में विशुद्धि अनंतगुण होती है । इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001832
Book TitleKarmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Original Sutra AuthorShivsharmsuri
AuthorGunratnasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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