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प्रस्तावना
१० ] पर चूर्णि टीकाएं उपलब्ध थी , साथ साथ सप्ततिका, सप्ततिकाचूर्णि कषायप्राभृत, कषायप्राभृतचूर्णि आदि में उपशमश्रेणि अदि विषयों पर विवेचन मिलता है तथापि वह संक्षिप्त और भिन्न भिन्न प्रकरणों में विकीर्ण हैं ।
___जिज्ञासु वर्ग उपशमनाकरण के पदार्थों का सरल व मुविस्तृत रूप तुलनात्मक अध्ययन से (Pomparative study ) कर सके। जेन-शासन की श्रुतनिधि में एक अमूल्य कोहिनूर स्वरूप अपूर्व शास्त्रग्रन्थ का सर्जन हो एसे परम पावन उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत टीका (Cemmentry) को चुना गया । इस भगीरथ योजना के साक्षात्कार हेतु जैनशासनकौशल्याधार सुनिहित. शिरोमणि परमश्रद्धेय पूज्यपादाचार्य देव श्रीमद्विजय प्रेमसूरिश्वरजी महाराजा ने स्वपट्टप्रद्योतक स्याद्वादनय प्रमाणविशारद वधमानतपोनिधि सुविशालगच्छाधिपति श्रीमद् विजय भुवनलानुसूरिश्वरजी महागजा (तत्कालीन पूज्यपाद पन्यासप्रवर श्री भानुविजयजी महाराजा) के मेधावी युवा शिष्यप्रशिकों को अपनी कृप रम भरी दृष्टि का निशाना बनाया। वे थे जिन शासन छिपे सितारे गुरुकृपापिपासु तकालीन परमपूज्य जयघोषविजयजी म. सा. प. पू धर्मानंदविजयजी म. सा. प. पू. हेमचन्द्रविजयजी म. सा. व मेरे पूज्यपाद गुरुदेव श्री गुणरत्न विजयजी म. सा. ( फिलहाल पूज्यपाद जयघोषसूरीश्वरजी म. सा., पूज्यपाद स्वर्गीय आ. श्री धमजित्सूरीश्वरजी म. सा., पूज्यपाद आ. श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा., पूज्यपाद आ. श्री गुणरन्नसूरीश्वरजी म. सा.)
.. पूज्यपाद जयघोषसूरीश्वरादि चारों आचार्य भगत कषायप्राभृत, कषायप्राभत- चूर्णि कम्मपयडी, कम्मपयडी चूर्णि पञ्चसंग्रह, सप्ततिका आदि ग्रन्थों में से पदार्थसंग्रह करते थे । मेरे पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद् गुणरत्नसूरी म. सा. ५ साल के अल्प दीक्षा पर्याय में ही गहन पदार्थों को व्याकरण, न्याय. चित्र यन्त्र स्थापना आदि से सुसज्ज सरल संस्कृत भाषा में प्रेमगणाटीका का प्रारूप देते थे।
प्रस्तुत प्रेमगुणा टीका की विशेषता इम टीका में कर्म प्रकृति, कषायप्राभृत, कषाय पाभूत चूर्णि, पञ्चसंग्रह, आगम विशेषावश्यक इत्यदि करीव ३५ ग्रन्थों का आधार लिया गया है। जगह-जगह पर अनेक शास्त्र पाठों का आधार लेकर श्रुतज्ञान-पिपासु की बहुमुखी प्रतिभा विकसित करने का अथाग प्रयास कीया गया है।
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