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निशीथ भाष्य और उसके कर्ता :
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नि० गा० १३६८ = बृहत्० गा० ४३३२ । इसे मलय गिरि ने पुरातन गाथा कहा है।
कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि निशीथ चूर्णि जिसे भद्रबाहुकृत कहती है, उसे मलयगिरि मात्र 'पुरातन' कहते हैं। देखो, निशीथ गा० ७६२ = बृ० गा० ३६६४ | किन्तु यहाँ रिंकार को ही प्रामाणिक माना जायगा, क्योंकि वे मलयगिरि से प्राचीन हैं ।
कुछ गाथाएं ऐसी भी हैं, जो चूर्णिकार के मत से अन्य आचार्यद्वारा रचित हैं, जैसे --- निशीथ गा० १५०, ५००६ आदि ।
उक्त चर्चा के फलस्वरूप हम निम्न परिणामों पर प्रासानी से पहुँच सकते हैं : (१) प्राचार्य भद्रबाहु ने निशीथ सूत्र की नियुक्ति का संकलन किया ।
(२) निशीथ नियुक्ति में जहाँ स्वयं भद्रबाहु-रचित गाथाएं हैं, वहाँ अन्य प्राचीन प्राचार्यों की गाथाएँ भी हैं ।
(३) बृहत्कल्प और निशीथ की नियुक्ति की कई गाथाए समान हैं।
(४) प्राचीन गृहीत तथा संकलित गाथाओंों की श्रावश्यकतानुसार यथाप्रसंग भद्रबाहु ने व्याख्या भी की है ।
निशीथ भाष्य और उसके कर्ता :
निशीथ सूत्र की नियुक्ति नामक प्राकृत पद्यमयी व्याख्या के विषय में विचार किया जा चुका है। अब नियुक्ति की व्याख्या के विषय में विचार प्रस्तुत है । चुर्गिकार के अभिप्राय far की प्राकृत पद्यमयी व्याख्या का नाम ' भाष्य' है । अनेक स्थानों पर नियुक्ति की उक्त व्याख्या को चूर्णिकार ने स्पष्ट रूप से 'भाष्य' कहा है, जैसे - 'भाष्यं यथा प्रथमोद्देशके' - निशीथ चूर्णि भाग २, पृ० ६८, 'सभाध्यं पूर्ववत्' यह प्रयोग भी पृ०७३, ७४, आदि ।
कितनी ही बार हुआ है-वही
चूर्णिकार ने व्याख्याता को कई बार 'भाष्यकार' कहा है, इस पर से भी नियुक्ति की टीका का नाम 'भाष्य' सिद्ध होता है । जैसे - निशीथ गा० ३८३, ३६०, ४३५, ११००, ४७८५ श्रादि की चूणि । इससे यह तो स्पष्ट ही है कि नियुक्ति की व्याख्या 'भाष्य' नाम से प्रसिद्ध रही है ।
प्रस्तुत भाष्य की, जिसमें नियुक्तिगाथाएँ भी शामिल हैं, समग्र गाथाओं की संख्या ' ६७०३ हैं । निशीथ नियुक्ति के समान भाष्य के विषय में भी कहा जा सकता है कि इन समग्र गाथाओं की रचना किसी एक प्राचार्य ने नहीं की । परंपरा से प्राप्त प्राचीन गाथाओं का भी यथास्थान भाष्यकार ने उपयोग किया है, और अपनी ओर से भी नवीनगाथाएं बनाकर
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यह संख्या कम भी हो सकती है, क्योंकि कई गाथाएँ पूनरावृत्त हैं ।
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