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________________ निशीथ भाष्य और उसके कर्ता : २६ नि० गा० १३६८ = बृहत्० गा० ४३३२ । इसे मलय गिरि ने पुरातन गाथा कहा है। कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि निशीथ चूर्णि जिसे भद्रबाहुकृत कहती है, उसे मलयगिरि मात्र 'पुरातन' कहते हैं। देखो, निशीथ गा० ७६२ = बृ० गा० ३६६४ | किन्तु यहाँ रिंकार को ही प्रामाणिक माना जायगा, क्योंकि वे मलयगिरि से प्राचीन हैं । कुछ गाथाएं ऐसी भी हैं, जो चूर्णिकार के मत से अन्य आचार्यद्वारा रचित हैं, जैसे --- निशीथ गा० १५०, ५००६ आदि । उक्त चर्चा के फलस्वरूप हम निम्न परिणामों पर प्रासानी से पहुँच सकते हैं : (१) प्राचार्य भद्रबाहु ने निशीथ सूत्र की नियुक्ति का संकलन किया । (२) निशीथ नियुक्ति में जहाँ स्वयं भद्रबाहु-रचित गाथाएं हैं, वहाँ अन्य प्राचीन प्राचार्यों की गाथाएँ भी हैं । (३) बृहत्कल्प और निशीथ की नियुक्ति की कई गाथाए समान हैं। (४) प्राचीन गृहीत तथा संकलित गाथाओंों की श्रावश्यकतानुसार यथाप्रसंग भद्रबाहु ने व्याख्या भी की है । निशीथ भाष्य और उसके कर्ता : निशीथ सूत्र की नियुक्ति नामक प्राकृत पद्यमयी व्याख्या के विषय में विचार किया जा चुका है। अब नियुक्ति की व्याख्या के विषय में विचार प्रस्तुत है । चुर्गिकार के अभिप्राय far की प्राकृत पद्यमयी व्याख्या का नाम ' भाष्य' है । अनेक स्थानों पर नियुक्ति की उक्त व्याख्या को चूर्णिकार ने स्पष्ट रूप से 'भाष्य' कहा है, जैसे - 'भाष्यं यथा प्रथमोद्देशके' - निशीथ चूर्णि भाग २, पृ० ६८, 'सभाध्यं पूर्ववत्' यह प्रयोग भी पृ०७३, ७४, आदि । कितनी ही बार हुआ है-वही चूर्णिकार ने व्याख्याता को कई बार 'भाष्यकार' कहा है, इस पर से भी नियुक्ति की टीका का नाम 'भाष्य' सिद्ध होता है । जैसे - निशीथ गा० ३८३, ३६०, ४३५, ११००, ४७८५ श्रादि की चूणि । इससे यह तो स्पष्ट ही है कि नियुक्ति की व्याख्या 'भाष्य' नाम से प्रसिद्ध रही है । प्रस्तुत भाष्य की, जिसमें नियुक्तिगाथाएँ भी शामिल हैं, समग्र गाथाओं की संख्या ' ६७०३ हैं । निशीथ नियुक्ति के समान भाष्य के विषय में भी कहा जा सकता है कि इन समग्र गाथाओं की रचना किसी एक प्राचार्य ने नहीं की । परंपरा से प्राप्त प्राचीन गाथाओं का भी यथास्थान भाष्यकार ने उपयोग किया है, और अपनी ओर से भी नवीनगाथाएं बनाकर १. यह संख्या कम भी हो सकती है, क्योंकि कई गाथाएँ पूनरावृत्त हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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