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________________ ७० आठवाँ परिच्छेद राजा को यह बात सुनकर श्रीपाल का हृदय काँप उठा। उन्होंने कहा :-“राजन्! हम लोग जिन-मन्दिर में बैठे हुए है। यहाँ बैठ के ऐसी बात कैसे कही जा सकती है? बिना अपराधी को देखे, और बिना उसकी बात सुने ऐसा कठोर दण्ड देना ठीक नहीं।" श्रीपाल की बात की राजा उपेक्षा न कर सके। उन्होंने अपराधी को अपने सम्मुख उपस्थित करने की आज्ञा दी। उसी समय कोतवाल धवल सेठको उनके सम्मुख ले आया। उसे देखते ही श्रीपाल मुस्करा उठे। उन्होंने कहा :-“वाह! आप लोग चोर तो बहुत अच्छा पकड़ लाये। यह तो कोट्याधिपति धनिक हैं। सैकड़ों नौकायें इनके साथ हैं मैं इन्हें अपने पिता के समान मानता हूँ और इन्हीं के साथ मैं यहाँ आया हूँ।" ___ इतना कंह, श्रीपालकुमार ने धवल सेठ के बन्धन छुड़ा कर उसे राजा से क्षमा-प्रार्थना करने को कहा। उसके क्षमायाचना करने पर राजा ने श्रीपाल से कहा :- "मैं आपकी इच्छा के विपरीत कोई कार्य कैसे कर सकता हूँ। आप जिसकी रक्षा करने को तैयार होंगे, उसका अपराध तो ईश्वर भी क्षमा कर देंगे। वह अजर-अमर हो जायगा।" कुछ दिनों के बाद एक दिन धवल सेठने श्रीपाल से आकर कहा:- “हम लोग अपने साथ जितना माल लाये थे, वह सब बेच दिया है और यहाँ से नया माल खरीद कर नौकायें भर दी हैं। अब जिस तरह आप हमें यहाँ लाये थे, उसी तरह कृपा कर स्वदेश पहुँचा दीजिये।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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