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आठवाँ परिच्छेद इस समय एक आश्चर्य जनक घटना घटित हुई। अचानक आकाश किसी दिव्य प्रकाश से आलोकित हो उठा। सब लोग चकित होकर आकाश की ओर देखने लगे। इसी समय एक विद्या चारण मुनि भूमिपर उतरे। उन्होंने प्रथम मन्दिर में जाकर प्रभु के दर्शन कर स्तुति की। तदनन्तर रंग-मण्डप में, देव-रचित सिंहासन पर बैठकर लोगों को उपदेश देना आरम्भ किया। उन्होंने कहा :-“हे भव्यजीवों! तुम लोग सिद्धचक्र की उपासना करो, जिससे इस और उस जन्म में अनेक प्रकार की सुसम्पत्ति प्राप्त हो सके। दुःखदुर्भाग्य, व्याधि, उपाधि संकट और उपद्रवों का नाश हो और तुम लोग अनन्त-सुख के भोक्ता हो सको। नवपदके सेवन से श्रीपालने जिसप्रकार सुख-सम्पत्ति प्राप्त की है, उसी प्रकार तुम भी प्राप्त कर सकते हो।” ____ मुनिराज की यह बातें सुन लोगों ने श्रीपाल का परिचय पूछा। मुनिराज ने विस्तार पूर्वक श्रीपाल का चरित्र कह सुनाया। अन्त में उन्होंने कहा :-“यही श्रीपाल इस समय यहाँ आये हुए हैं। इन्हीं की दृष्टि पड़ने से मन्दिर के यह द्वार खुले हैं।"
इस प्रकार लोगों को श्रीपाल का परिचय दे, मुनिराज आकाश की ओर उड़ गये। लोग बड़ी देर तक उनकी ओर देखते और नमस्कार करते रहे। कुमार श्रीपाल का चरित्र सुनकर राजा को बहुत ही आनन्द हुआ। उसने मन्दिर के बाहर निकलते ही अपने परिजन और नगर-निवासियों के
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