SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा परिच्छेद हैं, उतना अकेले मुझे देना होगा। इसके बदले में मैं वचन देता हूँ कि दस हजार सैनिक जो कार्य करते हैं, वह मैं अकेला करूँगा।" धवल सेठ पूरा हिसाबी वणिक था। उसने हिसाब लगा कर देखा तो एक करोड़ रुपये हुए। वह कहने लगा :-“इतनी बड़ी रकम अकेले आपको देना मेरे लिये असम्भव है। इसके लिये मुझे साहस ही नहीं होता।" धवल सेठ की यह मनोवृत्ति देखकर श्रीपाल हँस पड़े। उन्होंने कहा :-"मैंने यह बात आपकी हिम्मत देखने के लिये ही कही थी। यदि आप इतनी रकम देना स्वीकार करें, तब भी मैं एक सेवक की भाँति आपके साथ आने को तैयार नहीं हूँ; किन्तु मैं विदेशों की यात्रा करना चाहता हूँ। इसलिये आपके साथ यों ही चलने को तैयार हूँ। यदि आप उचित भाड़ा लेकर अपनी किसी नोका पर मुझे स्थान देने की कृपा करें, तो मैं सहर्ष आपके साथ चल सकता हूँ।" धवल सेठ ने कहा :-"मुझे इसमें किसी तरह की आपत्ति नहीं । दूसरे से तो मैं बहुत भाड़ा लेता; किन्तु आपसे प्रतिमास केवल सौ ही रुपये लूँगा।" श्रीपाल ने यह भाड़ा स्वीकार कर एक नौका में उपयुक्त स्थान पसन्द कर लिया। यथा समय सब नौकायें चल पड़ी। कुछ दिनों के बाद बब्बरकुल नामक एक बन्दरगाह मिला। इस समय प्रधान नाविकने कहा :-.यहाँ से अन्न और लकड़ियाँ आदि आवश्यक सामग्री संग्रह कर हमें शीघ्र ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy