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________________ श्रीपाल-चरित्र कमल' यन्त्र कहते हैं। यह सब यंत्रों में श्रेष्ठ है। विशुद्ध मन से इसकी आराधना करने से समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। इस यन्त्र की आराधना के लिये आश्विन शुक्ल सप्तमी से आश्विन शुक्ल पूर्णिमा तक और चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक नव दिन आयम्बिल व्रत करना चाहिये। इन नव दिनों में प्रति दिन तीनों काल श्रीजिनेश्वर की अष्ट प्रकार पूजा करनी चाहिये। भूमिपर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन, प्रत्येक पद की बीस-बीस नवकारवालियाँ गिनना, त्रिकाल देव-वन्दना, दोनों समय प्रति-क्रमण और गुरु की वैयावच्च भी करनी चाहिये। इनके अतिरिक्त धर्मोपदेश सुनना, शरीर को वशीभूत रखना, विचार-पूर्वक बोलना और सिद्धचक्र यन्त्र को पञ्चामृत से प्रक्षालन कर उसका पूजन करना भी आवश्यक है। नवें अर्थात् अन्तिम दिन में; अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भक्ति करनी चाहिये। इस प्रकार नव ओली अर्थात् ८१ आयंबिल करने से नवपद की आराधना समाप्त होती है। इस तप में सब मिलाकर साढ़े चार वर्ष का समय लगता है। तप की समाप्ति होने पर यथाशक्ति दान-धर्म करना चाहिये। इससे जन्मजन्मान्तर में सब प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इस यन्त्र की आराधना के फल के सम्बन्ध में इतना ही कहना पर्याप्त होगा, कि इससे समस्त दुःखों का नाश होता है। इसके प्रक्षालन-जल से चौरासी प्रकार के वायु और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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