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तीसरा परिच्छेद यह सुन, दूत तुरन्त वहाँ से चलता बना। उसने अपने दल को यह हर्ष-समाचार सुनाया। सुनते ही मारे खुशी के सारा दल उछल पढ़ा।
उधर राजा के हृदय में तो क्रोधाग्नि धधक रही थी। राज-कन्या की आहुती दे वह उसे शान्त करना चाहता था। राज-सभा में पहुँचते ही उसने मैना सुन्दरी को बुलाकर कहा-देख, अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है। तू कर्मवाद छोड़कर मेरा पक्ष ग्रहण कर। मेरी कृपा से तुझे इच्छित सुखों की प्राप्ति हो सकती है। ___मैनासुन्दरी ने कहा-पिताजी! यह मिथ्यावाद छोड़ दीजिये। इस संसार में हम लोगों को जो कुछ सुख-दुख मिलता है, वह कर्म के कारण मिलता है। अन्यान्य चीजें तो केवल निमित्त मात्र हो सकती हैं।
पिता-पुत्री का यह अप्रिय विवाद सुनकर लोग तरहतरह की बातें करने लगे। कोई राजा को दोष देता, तो कोई राज-कन्या को। कोई कहता-राजा यह काम अच्छा नहीं कर रहे हैं, कोई कहता-राज-कन्या को इस समय मौका देख कर बात करनी चाहिये थी।
जिस समय राज-सभा में यह विवाद चल रहा था, उसी समय शहर में कोढ़ियों के दल ने प्रवेश किया। इस समय वे एक बरात के रूप में चले रहे थे। कोढ़ियों के राजा का नाम उम्बर राणा था। यह हमारे वही पूर्व-परिचित कुमार श्रीपाल थे। उनके ऊपर किसी कोढ़ी ने छत्र धर रखा था, तो कोई
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