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श्रीपाल-चरित्र
१८७ होते। (४) जिन जीवों में परस्पर स्वाभाविक ही वैर होता है, उनका वैर भाव नष्ट हो जाता है ; यानी मित्र की तरह मिल-जुलकर रहते हैं। (५) भगवान जहाँ विचरण करते हैं, वहाँ दुष्काल नहीं पड़ता। (६) किसी प्रकार का भय न हो, और शत्रु सामना न कर सके। (७) महामारी आदि का उपद्रव नहीं होता। (८) इति अर्थात् धान्यादिक को नाश करनेवाले जीवजन्तुओं की उत्पत्ति नहीं होती। (९) अतिवृष्टि नहीं होती। (१०) अनावृष्टि नहीं होती। (११) भगवान के पीछे देदीप्यमान तेज-राशि-भामण्डल चमका करता है। देवकृत १९ अतिशय इस प्रकार है :
___ (१) मणिरत्नमय सिंहासन सदा साथ रहता है। (२) मस्तकपर तीन छत्रों की छाया रहती है। (३) धर्मध्वज-रत्नमय इन्द्रध्वज निरन्तर आगे चलता है। (४) बारह जोड़ी चँवर आप ही आप डोला करते हैं। (५) धर्मचक्र आकाश में रहने पर भी आगे-आगे चलता है। (६) प्रभु के शरीर से बारह गुना बड़ा अशोक-वृक्ष उनके मस्तकपर सदा साथ रहता है। (७) प्रभु जब पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर बैठते हैं, तब वे चतुर्मुख दिखायी देते हैं। (८) चाँदी, सोना और रत्नमय तीन किले होते हैं। (९) भगवान जब चलते हैं, तब सुवर्णामय नव कमल पैरों के आगे पीछे चलते हैं। (१०) कांटे अधोमुख हो
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