SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोलहवाँ परिच्छेद अजीतसेन मुनिका धर्मोपदेश कालान्तर में चारित्र की वृद्धि होने पर अजीतसेन राजर्षि को अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। वे घूमते-घूमते एक समय चम्पानगरी में आ पहुँचे। उनके आगमन का समाचार सुनते ही राजा श्रीपाल अपनी माता और स्त्रियों को साथ ले, बड़ी धूम-धाम से उनको वन्दन करने गये। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने तीन प्रदक्षिणा देकर मुनिराज को तीन बार वन्दन किया। अन्यान्य लोगों ने भी उनका अनुकरण किया। पश्चात् धर्मोपदेश सुनने की इच्छा से सब लोग उनके सामने समुचित स्थान पर बैठ गये। अनन्तर राजा श्रीपाल के अनुरोध करने पर अजीतसेन मुनि ने धर्मोपदेश देना आरम्भ किया। हे भव्य प्राणियो! तुम लोग जिनराज के वचन श्रवण कर उन्हें हृदय में धारण करो और मोह को सर्वथा त्याग कर दो। बिना मोह त्याग किये सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो लोग मोह-जाल में पड़े रहते हैं, वे भव-चक्र में ही सदा फेरे लगाया करते हैं। जब उनका मोह दूर होता है, तब कहीं वे उन्नत अवस्था को प्राप्त करते हैं। इस संसार में मनुष्य जन्म दस दृष्टान्तों से दुर्लभ है। जब अनन्त पुण्यराशि एकत्रित होती है, तभी यह जन्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy