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________________ चौदहवाँ परिच्छेद नहीं; किन्तु प्रजापाल के वही जामाता हैं, जिन्हें कोढ़ी समझ कर उन्होंने मैनासुन्दरी को ब्याह दी थी । प्रजापाल के महल और रनवास में भी यह समाचार पहुँच गया । सुनते ही सौभाग्यसुन्दरी और रूपसुन्दरी प्रभृति रानियाँ तथा अन्यान्य परिजन लोग भी श्रीपाल और मैनासुन्दरी को देखने के लिये शिविर में आ पहुँचे। सभी एक दूसरे से आनन्द पूर्वक मिले 1 जुले। किसी के हृदय में किसी प्रकार का रोष या द्वेष दिखायी न देता था। चारों ओर आनन्द की धारा बह रही थी । सब लोग उसी धारा में बह कर हृदय के कलुषित भावों को तिलांजलि दे रहे थे। १३४ श्रीपाल कुमार ने सब लोगों को उपस्थित देख, उनके आनन्द में वृद्धि करने के लिये एक नाटक खेलने की आज्ञा । आज्ञा मिलते ही नाटक की सब चीजें ठीक कर दी गयीं । नाटक के खिलाड़ियों का एक दल रंगमञ्चपर उतरने के लिये तैयार हो गया; किन्तु नाटक के पहले ही दृश्य में जिस नटीका अभिनय था, वह बारंबार कहने पर भी अभिनय के लिये तैयार न हुई । उसने पहले कभी भी ऐसी मनोवृत्ति न दिखायी थी, इस लिये इस समय उसको आना-कानी करते देख, सबको बहुत ही आश्चर्य हुआ । बड़ी देर तक समझानेबुझाने पर अन्तमें वह खड़ी हुई और साधारण वेश पहन कर रंगमंच पर उपस्थित हुई । इस समय उसके चेहरे पर विषाद की घनघोर घटा छायी हुई थी; किन्तु किसी को इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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