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________________ १२१ श्रीपाल-चरित्र अंगभट्ट ने श्रीपाल को यह समाचार बतलाते हुए, अन्त में उसने कहा:- “हे कुमार! शिक्षा गुरु की यह बात सुन राजा ने राधावेध का आयोजन किया है। अबतक अनेक राजकुमार आ चुके, किन्तु किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली। आपकी विद्या-बुद्धि मुझे कुछ विचित्र ही दिखायी देती है। अतः मैं समझता हूँ, कि यदि आप वहाँ पहुँच जायें तो अवश्य ही आपको उसमें सफलता मिलेगी।" ___अंगभट्ट से यह वृत्तान्त सुन लेने के बाद श्रीपाल ने उसे दो कुण्डल उपहार दे, बिदा किया। रात को बहुत कुछ सोच विचार करने के बात, उन्होंने वहाँ जाना स्थिर किया। हार के प्रभाव से सुबह होते ही वह कोल्लागपुर पहुँच गये। राधावेध करना उनके लिये कोई कठिन कार्य न था। उन्होंने राजा और सभा-जनों के सम्मुख देखते-हीदेखते पुतली की बायीं आँख छेद डाली। उसी समय राजा ने उन्हें विजयी घोषित किया। राज-कुमारी ने भी उसी क्षण उनके गले में वर-माला पहना दी। तदनन्तर राजा ने शुभ मुहूर्त में बड़े समारोह से दोनों का विवाह करा दिया। अब श्रीपाल कुमार राजा के दिये हुए निवासस्थान में रह कर, उनका आतिथ्य ग्रहण करते हुए अपनी नयी दुलहिन के साथ सुखोपभोग करने लगे। पाठकों को यह स्मरण होगा, कि श्रीपाल कुमार थाणापुरी में अपने मामा को बिना किसी प्रकार की सूचना दिये ही वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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