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दसवाँ परिच्छेद दिया। गोह दिवाल के चिपट गयी। धवल सेठ अपनी कमर में कटारी लगाकर उस डोरी पर चढ़ने लगा। उसे इस प्रकार डोरी पर चढ़ने का अभ्यास न था। शरीर भारी और उम्र भी बड़ी थी, किन्तु इस समय उसके सिर पर हिंसा का भूत सवार था। इसीलिये वह ऊपर चढ़ता चला जाता था, किन्तु हम पहले ही कह चुके हैं कि उसके पाप का घड़ा भर गया था। अभी वह आधी दूर भी न पहुँचा था कि रस्सी हाथ से छूट जाने के कारण वह नीचे आ गिरा। श्रीपालको मारने के लिये उसने जो तीक्ष्ण कटारी ली थी, वह इस समय भी उसकी कमर में मौजूद थी। वही कटारी गिरते समय धवल के पेट में घुस गयी। फलतः वह कुछ ही क्षणों में छटपटा कर इस लोक से चल बसा। जो कटारी उसने श्रीपाल को मारने के लिये हाथ में ली थी, वही कटारी इस समय उसके लिये काल हो गयी।
सुबह होते ही लोगों ने चारों ओर से धवल सेठ की लाश को घेर लिया। गोह, रेशम की डोरी, कमर में कटारी :-यह सब चीजें धवल के मनोविचारों को प्रकाशित कर रही थीं। जो आता वही धिक्कारता और उसकी निन्दा करता, किन्तु श्रीपाल ने उसके दोषों को जरा भी अपने हृदय में स्थान न दिया। जैसे एक पुत्र अपने पिता का अन्तिम संस्कार करता है, उसी तरह श्रीपाल ने
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