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________________ दसवाँ परिच्छेद आज्ञा वापस लेने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा :- "यह धवल सेठ तो मेरे पिता के समान हैं। इन्होंने मेरे साथ थोड़ी-बहुत बुराई अवश्य की है, किन्तु साथ ही उन्होंने मुझपर ऐसे-ऐसे उपकार भी किये हैं कि किसी तरह भी उनका बदला नहीं चुकाया जा सकता है। इन्हें जैसे हो वैसे छोड़ दीजिये। भाँडोंने जो कुछ किया वह प्रलोभन में पड़कर किया, अतएव इनका भी कोई दोष नहीं । कृपया इन सबको शीघ्र ही छोड़ दीजिये । ” राजा वसुपाल, श्रीपाल की बात भला कैसे टाल सकते थे? उन्होंने तुरन्त धवल सेठ और भाण्ड - मण्डली को मुक्त कर दिया । नैमित्तिकने भी इस अवसर से लाभ उठाना उचित समझा। अतः उसने राजा से कहा :- "महाराज ! देखिये, जो मैं कहता था, वह बिलकुल ठीक निकला न ? अब तो श्रीपाल कुमार के सम्बन्ध में आपको कोई सन्देह नहीं रहा ?" ९८ राजा ने मुस्कुरा कर कहा :- "नहीं, अब मुझे कोई सन्देह नहीं रहा । तुमने जो बातें कही थीं, वे सब ठीक निकलीं। मैं तुमपर बहुत ही प्रसन्न हूँ।” इतना कह, राजाने नैमित्तिक को बहुत सा धन देकर विदा किया। श्रीपाल भी राजा से विदा ग्रहण कर तीनों स्त्रियों के साथ अपने निवास स्थान में चले आये | धवल सेठ ने इस प्रकार श्रीपाल के साथ अनेक बुराइयाँ कीं । बारंबार उनका सर्वनाश करना चाहा, किन्तु श्रीपाल ने सौजन्यवश अपने व्यवहार में जरा भी अन्तर न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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