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________________ श्रीपाल-चरित्र दीजिये।' कुमार ने कहाः-“राजन् ! उत्तम पुरुष अपने मुँह से अपने कुल और वंश का परिचय कदापि नहीं देते । उनके कार्य ही उनके कुल को प्रकट कर दिया करते हैं। यदि आप मेरा कुल जानना ही चाहते हैं तो अपने समस्त सैन्य को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा दीजिये। एक ओर आपकी समूची सेना रहेगी, दूसरी ओर अकेला मैं रहूँगा। एक तलवार के अतिरिक्त दूसरा हथियार मैं अपने पास न रक्तूंगा। जिस समय आपकी सेना के साथ मेरा युद्ध छिड़ेगा, उस समय अनायास आपको मेरे वंश का पता मालूम हो जायगा। लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ कि इस तरह पानी पीने के बाद जाति पूछने से क्या लाभ होगा? इस बात की जाँच तो पहले ही होनी चाहिये थी। खैर, आपको जो अच्छा मालूम हो वही कीजिये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको किसी प्रकार का मन: कष्ट पहुँचाना मेरा अभीष्ट नहीं है। मैं अपने मुँह से अपने वंश का परिचय कदापि न दूंगा। हाँ, यदि आप कुछ जानना ही चाहते हों, तो मैं एक सरल उपाय भी बतला देता हूँ। आज ही परदेश से हमारे शहर में आयी नौकाओं में मेरी दो रानियाँ भी हैं। यदि आप चाहें तो उन्हें बुला कर उनसे सब बातें जान सकते हैं। मुझे विश्वास है कि यह सब बातें बतलाने में उन्हें कोई आपत्ति न होगी।" श्रीपाल की यह बात सुन, राजा ने तुरन्त अपने मन्त्रियों को, उनकी रानियों को ले आने की आज्ञा दी। मन्त्री लोग उसी समय पालकी लेकर समुद्र-तट पर जा पहुंचे। ज्योंही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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