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________________ श्रीपाल - चरित्र फूट कर रोने लगा । कभी वह पछाड़ खाकर गिरता, कभी माथा पटकता और कभी छाती कूट-कूट कर बड़े वेग से रोने लगता । अचानक उसकी यह अवस्था देख कर सब लोग चारों ओर से दौड़ आये । उससे इस तरह रोने का कारण पूछने लगे । धवल सेठ ने बिलख कर कहा:- “क्या कहूँ, कहते कलेजा फटा जाता है । हाय ! हम लोगों का सर्वनाश हो गया । कुमार श्रीपाल मगरमच्छ देखने के लिये इस मंच पर चढ़े थे; किन्तु इसकी रस्सियाँ टूट जाने के कारण वे समुद्र में जा पड़े। हा दैव ! तूने यह क्या किया ? हा कुमार ! हम लोगों को इस तरह मझधार में छोड़कर कहां चले गये !" धवल सेठ की यह भयंकर बात सुनते ही कुमार की दोनों रानियाँ मूर्छित होकर गिर पड़ीं। उनकी सखी - सहचरी और दासियाँ भी घबड़ा गयीं। उन्होंने दोनों को होश में लाने की बड़ी चेष्टा की । नाना प्रकार के उपचार करने पर कुछ समय में दोनों को होश हुआ । होश में आते ही दोनों रानियाँ बड़े ही करुण स्वर से विलाप करने लगीं। उस समय जो अवस्था थी, वह वर्णन नहीं की जा सकती । उनका हृदय मारे दुःख के फटा जाता था। अभी उन दोनों के पाँव का महावर भी न छूटा था, अभी उनके ब्याह की चूनरी भी मैली न हुई थी। ऐसी अवस्था में उनके लिये यह दुःख असह्य हो पड़ना स्वाभाविक था । Jain Education International For Private & Personal Use Only ८३ www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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