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सारा खेल काम-वासना का
उत्पन्न होता है। कठिनाई आती है, राग-द्वेष पैदा होते हैं, नरक निर्मित होता है। ध्यान रखना कि यह वही आदमी है जो कल सोचता था कि काम-भोग से स्वर्ग मिलता है। यह वही आदमी है, अब शीर्षासन करने लगा। अब यह कहता है कि काम-भोग से नरक मिलता है। ___ महावीर कहते हैं, काम-भोग से न स्वर्ग मिलता है, न नरक मिलता है। काम-भोग पर स्वर्ग भी तुम्हारा मन ही आरोपित करता है,
काम-भोग पर तुम्हारा मन ही तुम्हारा नरक भी निर्मित करता है। तुम काम-भोग से वही पाते हो जो तुम डाल देते हो उसमें । तुम्हें वही मिलता है जो तुम्हारा ही दिया हुआ है। और तुम देना, डालना बंद कर दो तो काम-भोग विलीन हो जाता है, तिरोहित हो जाता है । खूटियां
खड़ी रहें अपनी जगह, तुम अपनी वृत्तियों को उन पर टांगना बन्द कर देते हो। __ और जिस दिन कोई व्यक्ति यह जान लेता है कि सुख भी मेरे, दुख भी मेरे—सब भाव मेरे हैं, उस दिन व्यक्ति मुक्त हो जाता है। जब तक मुझे लगता है कि दुख किसी और से आता है, सुख किसी और से आता है, तब तक मैं परतंत्र होता हूं, निर्भर होता हूं। ___ मुक्ति का यही है अर्थ-जिस दिन मुझे लगता है कि सब कुछ मेरा फैलाव है। जहां मैंने चाहा, सुख पाऊं, वहां मैंने सुख देख लिया । जहां मैंने चाहा दुख पाऊं वहां मैंने दुख देख लिया । जो मैंने देखा वह मेरी आंख से गये हुए चित्र थे, जगत ने केवल पर्दे का काम किया, चित्र मेरे थे। प्रोजेक्टर मैं हूं। लेकिन प्रोजेक्टर दिखायी नहीं पड़ते। फिल्म में भी आप बैठकर देखते हैं, प्रोजेक्टर पीठ के पीछे होता है। वह वहां छिपा रहता है, दीवार के भीतर, छोटे से छेद से निकलते रहते हैं चित्र, दिखायी पड़ते हैं पर्दे पर, जहां होते नहीं। जहां होते हैं, वह होती है पीठ के पीछे, वहां कोई देखता नहीं । पर्दे पर कुछ होता नहीं। पर्दे पर केवल जो प्रोजेक्टर फेंकता है वही दिखायी पड़ता है। ___ ध्यान रहे, जब मैं किसी स्त्री, किसी पुरुष, किसी मित्र, किसी शत्रु के प्रति किसी भाव में पड़ जाता हूं, तो प्रोजेक्टर मेरे पीछे भीतर छिपा है जहां से मैं चित्र फेंकत सरा व्यक्ति केवल एक पर्दा है, जिस पर वह चित्र दिखायी पड़ता है। मैं ही दिखायी पड़ता हं बहुत लोगों पर।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जब किसी आदमी में तुम्हें कोई बुराई दिखायी पड़े, तो बहुत गौर से सोचना। ज्यादा मौके ये बुराई तुम्हारी होगी। जैसे एक बाप है-अगर बाप गधा रहा हो स्कूल में, तो बेटे को गधा बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकेगा, बेटे को वह बुद्धिमान बनाने की कोशिश में लगा रहेगा। और जरा-सा बेटा कुछ नासमझी और मूढ़ता करे, जरा नम्बर उसके कम हो जायें तो भारी शोरगुल मचायेगा। बुद्धिमान बाप इतना नहीं मचायेगा । बुद्धू बाप जरूर मचायेगा । उसका कारण है, कि बेटा सिर्फ प्रोजेक्शन का पर्दा है । जो उनमें कम रह गया है वह उसमें पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। ___ मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा एक दिन अपना स्कूल से प्रमाण-पत्र लेकर लौटा सालाना परीक्षा का । मुल्ला ने बहुत हाय-तौबा मचायी, बहुत उछला-कूदा। और कहा कि बरबाद कर दिया, नाम डुबा दिया। किसी विषय में बेटा उत्तीर्ण नहीं हआ है। अधिकतर में शुन्य प्राप्त हुआ है। __ लेकिन बेटा नसरुद्दीन का ही था। वह खड़ा मुस्कुराता रहा । जब बाप काफी शोरगुल कर लिया और काफी अपने को उत्तेजित कर
ने कहा कि जरा ठहरिए, यह प्रमाण-पत्र मेरा नहीं हैं, पुरानी कुरान की किताब में मिल गया है। यह आपका है। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, 'तो ठीक, तो जो मेरे बाप ने मेरे साथ किया था वही मैं तेरे साथ करूंगा।' उसके लड़के ने पूछा, 'तुम्हारे बाप ने तुम्हारे साथ क्या किया था?' उसने कहा, 'नंगा करके चमड़ी उधेड़ दी थी।' 'तो ठीक! मेरा ही सही, कोई हर्जा नहीं । तेरा कहां है?' उसके बेटे ने कहा, 'मेरी भी हालत यही है। इसीलिए तो मैंने आपका दिखाया है, शायद आप थोड़े नरम हो जायें।'
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