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________________ सारा खेल काम वासना का महावीर को दुख नहीं दे सकते। दूसरे को दुख देना मेरे हाथ में कहां है, जब तक दूसरा दुखी होने को तैयार न हो। यह मेरी स्वतंत्रता नहीं है कि मैं दूसरे को दुख दे दूं। जीसस को हमने सूली देकर देख ली, और हम दुख नहीं दे पाये। और मंसूर के हमने हाथ पैर काट डाले और गर्दन तोड़ डाली, तो भी हम दुख नहीं दे पाये। मंसूर हंस रहा था। और हमने वह लोग भी देख लिए हैं कि उनको सिंहासनों पर बिठा दो तो भी उनके चेहरे पर हंसी नहीं आती। हम न सुख दे सकते हैं, न दुख दे सकते हैं। यह हमारे हाथ में नहीं है। यह भी थोड़ा समझ लेने जैसा है। हम आमतौर से सोचते हैं, किसी को दुख मत दो। आप दे कब सकते हो दूसरे को दुख ? यह कहा किसने? यह वहम आपको पैदा कैसे हुआ? यह वह एक गहरे दूसरे वहम पर खड़ा हुआ है। हम सोचते हैं, हम दूसरे को सुख दे सकते हैं। इसलिए यह जुड़ा हुआ है। सब आदमी सुख दे रहे हैं। मां बेटों को सुख दे रही हैं। बेटे मां को सुख दे रहे हैं। पति पत्नियों को सुख दे रहे हैं। भाई भाई को, मित्र मित्र को सुख देने की कोशिश में लगे हैं और कोई किसी को सुख नहीं दे पा रहा है। अभी तक मुझे ऐसा आदमी नहीं मिला जो कहे कि मुझे मेरी मां ने सुख दिया। कि मां मिले, कहे कि मेरे बेटे ने मुझे सुख दिया। कोई किसी को सुख नहीं दे पा रहा है। और सा दुनिया सुख देने की कोशिश में लगी है। इतनी सुख देने की चेष्टा, और सुख का कहीं कोई पता नहीं चलता । बल्कि अकसर ऐसा लगता है कि जितना सुख देने की चेष्टा करो उतना दुख पहुंचता मालूम पड़ता है। क्या, हो क्या रहा है? हम सुख दे सकते हैं दूसरे को, तब तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती थी, कभी की बन जाती, कोई कमी नहीं है इसमें । कभी कोई कमी नहीं रही है। लेकिन यह पृथ्वी स्वर्ग बन नहीं पाती, क्योंकि हम दूसरे को सुख दे नहीं सकते। कितने ही उपकरण लें हम, और कितना ही धन हो, और कितना ही वैभव हो, कितना ही धान्य हो, कितनी ही खुशहाली हो, एफ्लुएंस कितना ही हो जाये, समृद्धि कितनी ही हो जाये, हम सुख नहीं दे सकते, क्योंकि सुख दिया नहीं जा सकता। कोई सुखी होना चाहे तो सुखी हो सकता है, लेकिन कोई किसी को सुखी कर नहीं सकता । इस बात को ठीक से समझ लें । सुख दूसरे के द्वारा, दूसरे से, निर्मित नहीं होता। आप चाहें तो सुखी हो सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो सुखी हो सकता है। लेकिन महावीर की भी यह हैसियत नहीं है कि किसी को सुखी कर दें। आप अगर महावीर के पास भी हों तो दुखी रहेंगे। आपसे महावीर हारेंगे, जीतने का कोई उपाय नहीं है। आप जीतकर ही लौटेंगे। अपनी रोती हुई शक्ल लेकर ही आप लौटेंगे। महावीर भी आपको हंसा नहीं सकते । विजेता अंत में आप ही होंगे। इसका कारण यह नहीं कि महावीर कमजोर हैं और आप बड़े शक्तिशाली हैं । इसका कुल कारण इतना है कि दूसरे को सुखी करने का कोई उपाय ही नहीं है। दूसरे को दुखी करने का भी कोई उपाय नहीं है। अगर सुखी करने का उपाय होता तो दुखी करने का भी उपाय होता। जो अपने हैं, जिनके साथ हमारा ममत्व का बन्धन है, उनको हम सुखी करने का उपाय करते हैं। जिनके साथ हमारा ममत्व के विपरीत संबंध है, जिनसे हमारी घृणा है, ईर्ष्या है, जलन है, क्रोध है, उन्हें हम दुखी करने का उपाय करते हैं। हम दोनों में असफल होते हैं। न हम मित्रों को सुखी कर पाते, न हम शत्रुओं को दुखी कर पाते । अगर मित्र सुखी होते हैं तो यह उनका ही कारण होगा; अगर शत्रु दुखी होते हैं तो यह उनका ही कारण होगा। आप इसमें नाह अपने को न लायें । क्योंकि अगर मैं दुखी होना न चाहूं तो कोई दुनिया की शक्ति मुझे दुखी नहीं कर सकती। अगर मैं सुखी न होना चाहूं तो कोई दुनिया की शक्ति मुझे सुखी नहीं कर सकती । सुख और दुख व्यक्ति के निर्णय हैं, निजी, आत्मगत और व्यक्ति स्वतंत्र है । तब तो इसका यह अर्थ हुआ कि अहिंसा का यह अर्थ भी करना ठीक नहीं कि हम दूसरे को दुखी न करें, यह अर्थ भी ठीक नहीं है। दूसरे को दुखी करने की चेष्टा न करें, इतना है अहिंसा का अर्थ । क्योंकि दूसरे को हम दुखी तो कर ही न पायेंगे, लेकिन दूसरे को Jain Education International 63 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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