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________________ सारा खेल काम-वासना का पहले, क्योंकि अण्डे के पहले मुर्गी हो कैसे सकेगी! और ऐसा नहीं कि गैर-बुद्धिमान इस तरह के तर्क में पड़ते हैं, बड़े-बड़े विचारशील लोग, बड़े दार्शनिकों ने भी इस पर चिंतन किया है कि मुर्गी पहले कि अण्डा पहले। ___ एक भारतीय विचारक राहुल सांकृत्यायन ने बड़ी मेहनत की है इस विचार पर कि मुर्गी पहले कि अण्डा पहले । हमको भी लगता है कि प्रश्र तो सार्थक है, पूछा जा सकता है। लेकिन प्रश्न व्यर्थ है, पूछा ही नहीं जा सकता । प्रश्न भाषा की भूल से पैदा होता है, लिंग्विस्टिक फैलिसी है। असल में जब हम मुर्गी कहते हैं तो अण्डा आ गया। जब हम अण्डा कहते हैं तो मुर्गी आ गयी। हम बाहर से मुर्गी-अण्डे को दो में कर लेते हैं, लेकिन मुर्गी-अण्डे दो नहीं हैं । एक श्रृंखला के हिस्से हैं । हम तोड़ लेते हैं कि यह रही मुर्गी और यह रहा अण्डा । जब हम कहते हैं, यह रही मुर्गी, तो मुर्गी में अण्डा छिपा है । जब हम कहते हैं, यह रही मुर्गी तो यह मुर्गी अण्डे से ही पैदा हुई है। यह अण्डे का ही फैलाव है, यह अण्डे का ही आगे का कदम है। यह अण्डा ही तो मर्गी बना है। __जब हम आपसे कहते हैं बूढ़ा, तो आपका बचपन उसमें छिपा हुआ है। आपकी जवानी उसमें छिपी हुई है। बूढ़ा आदमी जवानी लिए हुए है, बचपन लिए हुए है। जब हम कहते हैं बच्चा, तो बच्चा भी बुढ़ापा लिए हुए है, जवानी लिए हुए है जो कल होगा वह अभी छिपा हुआ है । जो कल हो गया, वह भी छिपा है। लेकिन हम भाषा में तोड़ लेते हैं, मुर्गी अलग मालूम पड़ती है, अण्डा अलग मालूम पड़ता है। और ठीक भी है, जरूरी भी है। __ अगर दुकानदार से मैं जाकर कहूं कि मुझे अण्डा चाहिए और वह मुझे मुर्गी दे दे, तो बड़ी कठिनाई खड़ी हो जायेगी। दुकानदार के लिए और मेरे लिए जरूरी है कि अण्डा अलग समझा जाये, मुर्गी अलग समझी जाये। लेकिन मुर्गी और अण्डे की जीवन व्यवस्था में वे अलग नहीं हैं। अण्डे का अर्थ होता है, होने वाली मुर्गी । मुर्गी का अर्थ होता है, हो गया अण्डा। देकार्त ने मजाक में कहा है-यह सवाल किसी ने देकार्त को पूछा है, तो देकार्त ने कहा कि मुझे मुश्किल में मत डालो। पहले तुम मेरी मुर्गी की परिभाषा समझ लो। देकार्त ने कहा कि मुर्गी है अण्डे का एक ढंग और अण्डे पैदा करने का । ए मैथड आफ दि एग टु प्रोड्यूस मोर एग्स । मुर्गी बस केवल एक विधि है अण्डे की और अण्डे पैदा करने की। इससे उल्टा भी हम कह सकते हैं, कि अण्डा केवल एक विधि है मुर्गी की, और मुर्गियां पैदा करने की । एक बात साफ है, कि अण्डा और मुर्गी अस्तित्व में दो नहीं हैं, एक श्रृंखला के दो छोर हैं। एक कोने पर अण्डा है, दूसरे कोने पर मुर्गी है । जो अण्डा है वही मुर्गी हो जाता है, जो मुर्गी है वही अण्डा हो जाती है। इसलिए जो इसे दो में तोड़कर हल करने की कोशिश करते हैं, वे कभी हल न कर पायेंगे। भाषा की भूल है। अस्तित्व में दोनों एक हैं, भाषा में दो हैं। ___ठीक ऐसा ही बाहर और भीतर भाषा की भूल है । जिसको हम बाहर कहते हैं, वह भीतर का ही फैलाव है। जिसको हम भीतर कहते हैं, वह बाहर की ही भीतर प्रवेश कर गयी नोक है। बाहर और भीतर हमारे लिए दो हैं, अस्तित्व के लिए एक हैं । वह जो आकाश आपके बाहर है मकान के, और जो मकान के भीतर है वह दो नहीं हो गया है आपकी दीवार उठा लेने से, वह एक ही है। ___ मैंने अपनी गागर सागर में डाल दी है। वह जो पानी मेरी गागर में भर गया है वह, और वह जो पानी मेरी गागर के बाहर है, दो नहीं हो गया है मेरी गागर की वजह से । वह जो भीतर है, वह जो बाहर है, वह एक ही है। आकाश अखण्डित है, आत्मा भी अखण्डित है। आत्मा का अर्थ है, भीतर छिपा हुआ आकाश । आकाश का अर्थ है, बाहर फैली हुई आत्मा। ___ यह मैं क्यों कह रहा हूं? यह मैं इसलिए कह रहा हूं ताकि आपको यह दिखायी पड़ जाये कि चाहे बाहर से शुरू करो, चाहे भीतर से शुरू करो। बाहर से शुरू करो तो भी भीतर से शुरू करना पड़ता है, भीतर से शुरू करो तो भी बाहर से शुरू करना पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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