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एक ही नियम : होश जो हम मूर्छापूर्वक करते हैं, तभी कर्म-बंधन होता है । जो हम होशपूर्वक करते हैं, कोई कर्म-बंधन नहीं होता। तो महावीर यह नहीं कहते, आप क्या करते हैं। महावीर यह कहते हैं कि आप कैसे करते हैं। क्या महत्वपूर्ण नहीं है, भीतर का होश महत्वपूर्ण है। ___ 'प्रमाद को कर्म, अप्रमाद को अकर्म कहा है, अर्थात जो प्रवृत्तियां प्रमादयुक्त हैं वे कर्म-बंधन करने वाली हैं और जो प्रवृत्तियां प्रमादरहित हैं, वे कर्म-बंधन नहीं करती हैं।' ___ इसलिए उन प्रवृत्तियों की खोज कर लेना जो मूर्छा के बिना नहीं हो सकतीं । उनको छोड़ना । उन प्रवृत्तियों की भी खोज कर लेना जो बेहोशी में हो ही नहीं सकतीं, सिर्फ होश में हो सकती हैं, उनकी खोज करना, उनका अभ्यास करना । लेकिन यह अभ्यास बहिर्मुखी न हो, भीतरी हो, और होश से प्रारंभ होता हो । होश को बढ़ाना, ताकि वे प्रवृत्तियां बढ़ जायें जीवन में, जो होश में ही होती हैं।
जैसे मैंने कहा, प्रेम । अगर आप बेहोश हैं तो पहले तरह का प्रेम होगा। अगर थोड़े से होश में हैं और थोड़े से बेहोश में हैं तो दूसरे तरह का प्रेम होगा। अगर बिलकल होश में हैं तो तीसरे तरह का प्रेम होगा। प्रेम करुणा बन जायेगी। अगर बेहोश हैं तो करुणा कामवासना बन जाती है। अगर दोनों के मध्य में हैं तो काम और करुणा के बीच में वह जो कवियों का प्रेम है, वह होता है। __ प्रमाद के होने और न होने से; ज्ञान के होने या न होने से नहीं, प्रमाद के होने या न होने से, महावीर कहते हैं, मैं किसी को मूढ़ और किसी को ज्ञानी कहता हूं। वह कितना जानता है, इससे नहीं; कितना होशपूर्वक जीता है, इससे । उसकी जानकारी कितनी है, इससे मैं उसे ज्ञानी नहीं कहता हूं, और उसकी जानकारी बिलकुल नहीं है, इससे अज्ञानी भी नहीं कहता हूं। जानकारी का ढेर लगा हो और आदमी बेहोश जी रहा हो। __ मैंने सुना है एडिसन के बाबत । शायद इस सदी का बड़े से बड़ा जानकार आदमी था । एक हजार आविष्कार एडिसन ने किये हैं, कोई दूसरे आदमी ने किये नहीं। आपकी जिंदगी अधिकतर एडिसन से घिरी है। चाहे आप कहते कितने ही हों कि हम भारतीय हैं और हम महावीर और बुद्ध से घिरे हैं। भूल में मत रहना, महावीर और बुद्ध से आपके फासले अनंत हैं । घिरे आप किसी और से हैं । एडिसन से ज्यादा घिरे हैं, बजाय महावीर या बुद्ध के।
बिजली का बटन दबाओ, तो एडिसन का आविष्कार है । रेडियो खोलो तो एडिसन का आविष्कार है। फोन उठाओ. तो एडिसन का आविष्कार है। हिलो-इलो, सब तरफ एडिसन है। एक हजार आविष्कार हैं, जो हमारी जिंदगी के हिस्से बन गये हैं। इस आदमी के पास जानकारी का अंत नहीं था। बड़ा अदभुत जानकार आदमी था।
लेकिन एक दिन एडिसन का एक मित्र मिलने आया है। एडिसन सुबह-सुबह अपना नाश्ता करता है। नाश्ता रखा हुआ है। और एडिसन किसी सवाल को हल करने में लगा हुआ है। नौकर को आज्ञा नहीं है कि वह कहे, चुपचाप नाश्ता रख जाये। मित्र ने देखा, एडिसन उलझा है अपने काम में । नाश्ता तैयार है, उसने नाश्ता कर लिया। प्लेट साफ करके, ढांक करके रख दी। थोड़ी देर बाद जब एडिसन ने अपनी आंख उठायी कागज के ऊपर, देखा, मित्र आया है। कहा कि बडा अच्छा हआ आये। नजर डाली खाली प्लेट पर । एडिसन ने कहा जरा देर से आये । पहले आते तो तुम भी नाश्ता कर लेते। मैं नाश्ता कर चुका । खाली प्लेट।
जानकारी अदभुत है इस आदमी की, लेकिन होश? होश बिलकुल नहीं है। होश और बात है, जानकारी और बात है । आप कितना जानते हैं, यह अंततः निर्णायक नहीं है धर्म की दृष्टि से । आप कितने हैं, कितने चेतन हैं, कितने जगे हुए हैं, इस पर निर्भर करेगा। ___ कबीर की जानकारी कुछ भी नहीं है, लेकिन होश अनूठा है । मुहम्मद की जानकारी बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन होश अनूठा है। जीसस की जानकारी क्या है? कुछ भी नहीं, एक बढ़ई के लड़के की जानकारी हो भी क्या सकती है? लेकिन होश अनूठा है।
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