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एक ही नियम : होश है कि लोग क्या कहेंगे कि दो पैसे न दे सके। आपका हाथ खीसे में जाता है। यह लोगों के लिए जा रहा है, जो मौजूद हैं । यह दान नहीं है, यह मूर्छा है। आप भिखारी को दे रहे हैं, लेकिन कहीं कोई दया-भाव नहीं है। यह मूर्छा है।
आप दान करते हैं कि मंदिर पर मेरे नाम का पत्थर लग जाये। यह मूर्छा है। आप ही न बचे, मंदिर का पत्थर कितने दिन बचेगा? और जरा जाकर देखें पुराने मंदिरों पर जो पत्थर लगे हैं कौन उनको पढ़ रहा है। वह भी आप ही जैसे लोग लगवा गये हैं। आप भी लगवा जायेंगे। __ अगर दान मूर्छा है तो कर्म-बंधन है । लेकिन दान मूर्छा से हो ही नहीं सकता। अगर हो रहा है तो उसका मतलब वह दान नहीं है। आप धोखे में हैं, वह कुछ और है। चार लोगों में प्रशंसा मिलेगी, यह दान नहीं है। हजारों साल तक नाम रहेगा, यह दान नहीं है। यह तो सौदा है, यह तो सीधा सौदा है। अगर अकेले भी हैं आप, कोई देखनेवाला नहीं है और भिखारी हाथ फैलाता है, तब भी जरूरी नहीं है कि दान ही हो। ___ कई बार ऐसा होता है कि इनकार करना ज्यादा मंहगा और दे देना सस्ता होता है। एक दो पैसे दे देने में ज्यादा सस्ता मालूम पड़ता है मामला, बजाय यह कहने में कि नहीं देंगे। यह नहीं देना ज्यादा मंहगा मालूम पड़ता है। आप दो पैसे दे देते हैं।
भिखारियों को लोग अकसर दान नहीं देते. सिर्फ टालने की रिश्वत देते हैं कि जाओ, आगे बढो। वह रिश्वत है, और भिखारी भी अच्छी तरह जानते हैं कि ज्यादा शोरगुल मचाओ, डटे रहो।
आप देखेंगे कि भिखारी डटा ही रहता है। वह भी जानता है कि एक सीमा है, वहां तक रुको । एक सीमा है, जहां यह आदमी रिश्वत देगा कि अब जाओ। भिखारी भी जानते हैं कि दान कोई नहीं देता, इसलिए भिखारी भी आप यह मत सोचना कि अनुगृहीत होते हैं।
जानते हैं, अच्छा बुद्धू बनाया। जब वह लेकर आपसे चले जाते हैं तो आप यह मत सोचना कि वह समझते हैं कि बड़ा दानी आदमी मिल गया था।
आप रिश्वत देते हैं । भिखारी भी जानता है कि यह रिश्वत है। इसलिए जानता है कि आपकी सहनशीलता की सीमा को तोडना जरूरी है, तब आपका हाथ खीसे में जाता है। कितनी सहनशीलता है, इस पर निर्भर करता है। __ अकेले में भी अगर आप देते हैं तो टालने के लिए, हटाने के लिए। तो फिर दान नहीं है, मूर्छा है। दान मूर्छा से हो ही नहीं सकता।
अगर मूर्छा है, दान नहीं हो सकता। ___ चोरी बिना मूर्छा के नहीं हो सकती। अगर आप होशपूर्वक चोरी करने जायें, तो जा ही न सकेंगे। अगर आप होशपूर्वक किसी की चीज उठाना चाहें, उठा ही न सकेंगे। और अगर उठा लें तो जरा भीतर गौर करके देखना । जिस क्षण उठायेंगे, उस क्षण होश खो जायेगा, मोह पकड़ लेगा, तृष्णा पकड़ लेगी, होश खो जायेगा। ___ एक बारीक संतुलन है भीतर होश और बेहोशी का । जो आदमी होशपूर्वक जी रहा है, उससे पाप नहीं होता । इसका मतलब यह नहीं है कि महावीर चलेंगे तो कोई चींटी कभी मरेगी ही नहीं, महावीर चलेंगे तो चींटी मर सकती है, मरेगी। फिर भी महावीर कहते हैं, उसमें पाप नहीं, क्योंकि महावीर अपने तईं पूरे होशपूर्वक चल रहे हैं। अपने होश में कोई कमी नहीं है। अब अगर चींटी मरती है तो यह केवल प्रकृति की व्यवस्था है, महावीर का कोई हाथ नहीं है। __ और आप, आप भी चल रहे हैं उसी रास्ते पर, और चींटी मरती है तो आपको पाप लगेगा। यह जरा अजीब सा गणित मालूम पड़ता है। महावीर चलते हैं, पाप नहीं लगता। आप चलते हैं, पाप लगता है, चींटी वही मरती है। क्या फर्क है?
आप बेहोशी से चल रहे हैं। इसलिए प्रकृति-दत्त मरना नहीं है चींटी का, आपका हाथ है। आप अपनी तरफ से होश से चले होते,
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