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________________ एक ही नियम : होश पहली बात, ये जीसस के साथ कर रहे हैं, ऐसा जीसस को अगर लगता हो तो यह बात पैदा नहीं हो सकती। जिसके साथ ये कर रहे हैं वह जीसस से उतना ही दूर है जितना कि ये करनेवाले लोग दूर हैं। यह चेतना भीतर अलग खड़ी है। एक तीसरा कोण मौजूद हो गया है। साधारण आदमी की जिंदगी में दो कोण होते हैं— करनेवाला, जिस पर किया जा रहा है, वह । होशवाले आदमी की जिंदगी में तीन कोण होते हैं-- जो कर रहा है वह, जिस पर किया जा रहा है वह, और जो दोनों को देख रहा है वह । यह जो थर्ड, यह जो तीसरा है, यह जो तीसरी आंख है, यह जो देखने का तीसरा स्थान है, इसे महावीर कहते हैं, अप्रमाद । बड़ा मुश्किल है, सूली पर चढ़े हों, हाथ में खीलें ठोंके जा रहे हों, होश बचाये रखना मुश्किल है। जरा-सा एक आदमी धक्का देता है होश खो जाता है | हमारा होश है ही कितना? किसी आदमी का होश मिटाना हो, जरा-सा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। जरा-सा कुछ और सारा होश खो जाता है। होश जैसे है ही नहीं। एक झीनी पर्त है, झूठी पर्त है ऊपर-ऊपर। जरा-सा कम्पन, सब टूट जाता है। किसी भी आदमी को पागल करने में कितनी देर लगती है। आप जरूर दूसरों के बाबत सोच रहे होंगे, जिन-जिन को आपने पागल किया है। अपने बाबत सोचिए। पत्नी एक शब्द बोल देती है, और आप पागल हो जाते हैं। पत्नी को भी तब तक राहत नहीं मिलती, जब तक आप पागल हो न जायें। अगर न हों तो उसको लगता है, वश के बाहर हो गये । एक मित्र मेरे पास आते हैं। पत्नी कर्कशा है, उपद्रवी है। वे मुझसे बार-बार कहते हैं, क्या करूं! सब संभालकर घर जाता हूं, लेकिन उसका एक शब्द, और आग में घी का काम हो जाता है। बस उपद्रव शुरू हो जाता है। मैंने उनसे कहा कि एक दिन संभालकर मत जाओ, क्योंकि संभालकर तुम जो जाते हो वही तुम्हारे भीतर इकट्ठा हो जाता है। फिर पत्नी जरा सा घी छिड़क देती है तो आग तो तुम संभालकर ला रहे हो। एक दिन तुम संभालकर जाओ ही मत । गीत गुनगुनाते जाओ, नाचते जाओ, संभालकर मत जाओ, कोई फिक्र ही मत करो, जो होगा देखा जायेगा । और जब पत्नी कुछ करे, क्योंकि तुमने आज तक बहुत क्रोध पत्नी पर कर लिया, कोई परिणाम तो होता नहीं, कोई हल तो होता नहीं। एक नयी तरकीब का उपयोग करो। जब पत्नी कुछ करे तो तुम मुस्कुराते रहना । कुछ नहीं करना है, ऐसा नहीं, कुछ नहीं करोगे तो मुश्किल पड़ेगी। तुम मुस्कुराते रहना । यह कुछ करना रहेगा, एक बहाना रहेगा । हंसते रहना । पांच-सात दिन बाद उनकी पत्नी ने आकर कहा कि मेरे पति को क्या हो गया है। बिलकुल हाथ के बाहर जाते हुए मालूम पड़ते हैं । उनका दिमाग तो ठीक है? पहले मैं कुछ कहती थी तो क्रोधित होते थे, वह समझ में आता था। अब मैं कुछ कहती हूं तो वे हंसते हैं। इसका मतलब क्या है? उनका दिमाग तो ठीक है! जब उनका दिमाग बिगड़ जाता था तब पत्नी मानती थी कि ठीक है, क्योंकि वह नार्मल था। अब ठीक हो रहा है तो पत्नी समझती है कि दिमाग कुछ खराब हो रहा है। स्वभावतः जब कोई गाली दे तो हंसना । तो अगर जीसस को सूली देनेवाले लोगों को लगा हो कि यह आदमी पागल है, तो आश्चर्य नहीं है। क्योंकि एब- नार्मल था, असाधारण थी यह बात । जो सूली दे रहे हैं इनके लिए प्रार्थना करनी कि हे प्रभु, इन्हें माफ कर देना । हम सब जीते हैं प्रमाद में, इसलिए प्रमाद में होना हमारी साधारण, नार्मल अवस्था हो गयी है। हमारे बीच कोई जरा होश से जीये तो हमें अड़चन मालूम होती है। क्योंकि होश से जीनेवाला हमारे बंधन के बाहर होने लगता है। होश से जीनेवाला हमारे हाथ के बाहर खिसकने लगता है। क्योंकि होश से जीनेवाले का अर्थ है कि हम बटन दबाते हैं, उसके भीतर क्रोध नहीं होता । हम बटन दबाते हैं, उसके भीतर आनंद नहीं होता, वह अपना मालिक होता जा रहा है। अब जब वह आनंदित होता है, होता है। Jain Education International 49 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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