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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 खो जाये। इस जगत में जो घर खोज रहे हैं, वे तो नया शरीर खोजते चले जायेंगे। वे जन्मेंगे, फिर मरेंगे—जन्मेंगे, फिर मरेंगे और घर को खोजते रहेंगे। इस जगत में दो तरह के लोग हैं-वे जो यहां घर खोज रहे हैं, और वे जो यहां घर नहीं खोज रहे हैं। जो यहां घर नहीं खोज रहा है, वह अनगार हो गया है। और अनगार होकर यह पात्रता मिलती है कि दूसरा, असली घर खोजा जा सके। वह भीतर है, वह बाहर नहीं है। उसे बनाने की भी कोई जरूरत नहीं है, वह मौजूद है। वह मेरे जीवन का मूल उत्स और स्त्रोत है। उसे कहीं भी पाने जाने का कोई सवाल नहीं है। वह सदा से मौजद है. सिर्फ मैं भीतर मडं। दीक्षा का अर्थ है, वह व्यक्ति, वह गुरु जो तुम्हें भीतर मोड़ दे। 'जब दीक्षित होकर कोई अनगार वृत्ति को प्राप्त करता है, तब साधक उत्कृष्ट संवर एवं अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है।' एक तो धर्म है जिसे हम शास्त्रों से सुनते हैं, सदगुरुओं से सुनते हैं, जो प्रचलित है। वह साधारण धर्म है। और जब कोई व्यक्ति दीक्षित होकर भीतर जाता है तो अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है। तो उसे वास्तविक धर्म की खबर मिलती है। इसे हम ऐसा समझें, वह साधारण धर्म भी, जो बाहर हमें दिखाई पड़ता है-चर्च है, मंदिर है, गुरुद्वारा है, मस्जिद है, कुरान है, बाइबिल है, गीता है, महावीर-बुद्ध के वचन हैं, सदगुरु हैं, जो कह रहे हैं, बोल रहे हैं। यह कितना ही सही हो तो भी मूल नहीं है-मूल से थोड़ा हटकर है, सेकेंड हैंड है। __और कुछ भी कहें-वह जो सेकेंड हैंड है, वह जीवन में क्रांति नहीं ला सकता। और उससे आप अपने को समझाने की कोशिश मत करना। लोग हैं, जो अपने को समझा लेते हैं। एक मित्र मुझसे आकर कह रहे थे, मुझसे आकर बोले कि, 'आइ हैव परचेज्ड ए ब्रैड न्यू सेकेंड हैंड कार ।' बैंड न्यू सेकेंड हैंड कार! बिलकुल नयी सेकेंड हैंड गाड़ी खरीदी है। अब सेकेंड हैंड गाड़ी बिलकुल नयी कैसे हो सकती है। पमहावीर के वचन कितने ही समझ लें कष्ण को कितना ही पी जायें वे सेकेंड हैंड हैं। उनसे वास्तविक धर्म का संबंध नहीं हो रहा है। वास्तविक धर्म की खबर मिल रही है—संबंध नहीं हो रहा है। वास्तविक धर्म की तरफ से चुनौती, निमंत्रण मिल रहा है-संबंध नहीं हो रहा है। यात्रा करनी पड़ेगी। तो महावीर कहते हैं, जब कोई दीक्षित होकर भीतर प्रवेश करता है, तब अनुत्तर धर्म-शुद्ध, वास्तविक, मौलिक, निज का धर्म अनुभव होता है। '. 'जब साधक उत्कृष्ट संवर एवं अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब अंतरात्मा पर से अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल सब झड़ जाते हैं।' 'जब अंतरात्मा से अज्ञानकालिमाजन्य कर्म-मल दूर हो जाता है, तब सर्वत्रगामी, केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त होता है।' इसे थोड़ा समझ लें। महावीर और सभी जाननेवालों की यह दृष्टि है कि आपकी अंतरात्मा शुद्ध ज्ञान है-प्योर नोइंग। अगर आपको उस शुद्ध ज्ञान का पता नहीं चल रहा है, तो उसका कारण है कि आपके आसपास बहुत से कर्मों का जाल है। जैसे एक दीया जल रहा है, एक लालटेन जली है और कांच पर कालिमा है, तो प्रकाश बाहर नहीं आता; अंधेरा है कमरे में। दीया जल रहा है और कमरे में अंधेरा है। लेकिन अंधेरे का कारण यह नहीं है कि भीतर ज्योति नहीं है। अंधेरे का कुल कारण इतना है कि ज्योति बाहर आ सके, इसके बीच में बाधाएं हैं। ___ तो धर्म सिर्फ बाधाओं को अलग करने का नाम है। भीतर ज्योति जली हुई है, सिर्फ बाधाएं गिर जायें। वह जो लैम्प के कांच पर जम गयी कालिख है, काजल है, वह हट जाये तो प्रकाश प्रगट हो जाये। प्रकाश को किसी से मांगने नहीं जाना है, उसे आप लेकर 546 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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