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महावीर-वाणी भाग : 2 महावीर कहते हैं : कलह दूसरे के कारण नहीं है, कलह मेरी ही कामना के कारण है। अगर ऐसा संबंध कोई हो सके, जहां दोनों ही व्यक्ति कामवृत्ति से भरे हुए नहीं हैं, तो कलह विदा हो जायेगी। अगर जरा सी भी कामवृत्ति मौजूद है, तो कलह जारी रहेगी। ___ जो आदमी दूसरे से सुख या दुख पाने की कोशिश कर रहा है, या स्त्री सुख या दुख पाने की कोशिश कर रही है, वे दुख में और पीड़ा में, और नर्क में अपने को उतार ही रहे हैं। क्योंकि महावीर कहते हैं, और सभी ज्ञानियों की सहमति है, कि आनंद का स्त्रोत भीतर है, दूसरे की तरफ आंख रखना भ्रांति है, वहां भिक्षा-पात्र फैलाना व्यर्थ है, वहां से न कुछ कभी मिला है और न मिल सकता है।
इसे हम अनुभव भी करते हैं। लेकिन जब एक स्त्री से दुख पाते हैं; एक पुरुष से दुख पाते हैं, तो हम सोचते हैं कि यह स्त्री गलत है, यह पुरुष गलत है; इतनी बड़ी पृथ्वी है, जरूर कोई ठीक पुरुष, कोई ठीक स्त्री होगी, जिससे मेरा संबंध हो तो यह पीड़ा नहीं होगी।
यही सारी भूल का गणित है। और हम कितनी ही स्त्रियों को बदलते चले जायें, तो भी पृथ्वी बड़ी है। और कितने ही पुरुषों को बदलते चले जायें-पृथ्वी बड़ी है। स्त्रियां सदा बाकी रहेंगी, पुरुष सदा बाकी रहेंगे, और वह भ्रांति कायम रहेगी कि शायद कोई न कोई पुरुष, कोई न कोई स्त्री हो सकती थी, जिससे मेरा संबंध स्वर्ग बन जाता!
वह कभी नहीं हुआ है। वह कभी होगा भी नहीं। लेकिन आशा को उपाय है। और वह आशा भटकाये चली जाती है। जब तक यह आशा न टूट जाये; जब तक एक स्त्री का अनुभव स्त्री मात्र का अनुभव न समझ लिया जाये; और जब तक एक पुरुष का अनुभव पुरुष मात्र का अनुभव न बन जाये; जब तक एक संबंध की व्यर्थता सारे संबंधों को व्यर्थ न कर दे, तब तक कोई व्यक्ति कामवृत्ति से ऊपर नहीं उठता।
हम कभी भी पूरा अनुभव नहीं कर पाते। पूरा अनुभव कर भी नहीं सकते। विज्ञान तक, जो कि सार्वभौम-युनिवर्सल नियम खोजने की कोशिश करता है, वह भी पूरे अनुभव नहीं कर पाता। और संदेह जो लोग करते हैं, वे किये जा सकते हैं।
डविड ह्यूम-बहुत कीमती विचारक हुआ इंग्लैंड में, उसने संदेह किया है विज्ञान के ऊपर। हम कहता है कि विज्ञान कहता है कि कहीं भी पानी को गर्म करो सौ डिग्री पर, तो पानी भाप बन जायेगा। लेकिन राम कहता है : क्या तुमने सारे पानी को भाप बनाकर देख लिया है? क्या तुमने सारे जगत के पानी को भाप बनाकर देख लिया है? तो जल्दी मत करो! क्योंकि कहीं ऐसा पानी मिल भी सकता है, जो सौ डिग्री पर भाप न बने। तो यह वैज्ञानिक नहीं है घोषणा। तुमने जितने पानी को भाप बनाकर देखा है, उतने पानी के बाबत कहो कि यह भाप बन जाता है सौ डिग्री पर; लेकिन शेष पानी बहुत है। उस पानी के संबंध में तुम्हारी कोई भी घोषणा अवैज्ञानिक है।
बात तो वह ठीक कह रहा है। विज्ञान की भी सामर्थ्य नहीं है कि वह सारे पानी को पहले भाप बनाकर देखे। दस पचास हजार बार प्रयोग दोहराया जा सकता है और फिर विज्ञान मान लेता है कि यह असंदिग्ध है; क्योंकि सभी जगह पानी एक ही नियम का पालन करेगा। पानी का स्वभाव सौ प्रयोगों से पकड़ लिया जाता है। अब सारे पानी को भाप बनाने की जरूरत नहीं है। लेकिन तर्क की तरह तो ठीक कह रहा है ह्यूम। ठीक वही मुसीबत आदमी के मन की भी है। __एक स्त्री का अनुभव स्त्रैण तत्व का अनुभव है। लेकिन हम समझते हैं यह केवल, एक व्यक्ति-स्त्री का अनुभव है। गलत खयाल है! एक-एक स्त्री उसी तरह स्त्रैण तत्व का प्रतीक है, जैसे पानी की एक बूंद सारे जगत के पानी का प्रतीक है; एक पुरुष सारे पुरुष तत्व का प्रतीक है। जो फासले हैं, फर्क हैं, वे गौण हैं, मौलिक बात एक पुरु __ और जैसे एक पुरुष का स्वभाव जिस ढंग से बरतता है, उसी ढंग से सारे पुरुष बरतते हैं। उनमें जो फर्क हैं वे डिटेल्स के हैं, विस्तार के हैं कि कहीं किसी नदी का पानी थोड़ा नीला है, और किसी नदी का पानी थोड़ा मटमैला है, और किसी नदी का पानी थोड़ा हरा है, और किसी नदी का पानी थोड़ा शुभ्र है—ये डिटेल्स के फर्क हैं। इनसे सौ डिग्री पर पानी गर्म होगा, इसमें कोई भेद नहीं पड़ता।
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