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संयम है संतुलन की परम अवस्था एक्सेप्शन। क्यों? क्या ऐसा कोई भी आदमी नहीं है जिसकी कोई दबी वासना न हो, और जो पद पर पहुंचे और पद उसे बिगाड़े नहीं? ___ ऐसे आदमी हैं। लेकिन ऐसा आदमी पद पर जाने की कोशिश नहीं करता क्योंकि पद पर जाने का कोई धक्का ही नहीं रह जाता। धक्का तो भीतर की वासना से आता है। ऐसा आदमी पद पर जाने की कोशिश नहीं करता। और यहां कोशिश करनेवाले जहां नहीं पहंच पाते, बिना कोशिश करनेवाला कैसे पद पर पहंच पायेगा?
उसका कोई उपाय नहीं है। जो पद से व्यभिचारित नहीं होता, वह पद तक नहीं पहुंच पाता। उसके पहुंचने का कोई कारण नहीं है। और जो व्यभिचारित हो सकता है, वही पहुंचने की कोशिश करता है। और जितना ज्यादा तीव्र वेग हो दबी हुई वासना का, उतनी तीव्रता से पहुंचने की कोशिश करता है। दबे वेग शक्ति बन जाते हैं। ___ महावीर कह रहे हैं कि आप अगर अवसर से दूर हैं—इसका नाम संयम नहीं है। स्त्री पास नहीं है-आप ब्रह्मचारी हैं। धन पास नहीं है-आप सादगी से जी रहे हैं। किसी को मार नहीं सकते, क्योंकि डरते हैं। क्योंकि मार वही सकता है. जो पिटने को तैयार है।
आप ध्यान रखना, जो पिटने को तैयार नहीं है, वह मार नहीं सकता। मारने की क्षमता उसी में आती है, जो पिटने के लिए बिलकल तैयार है। आप पिटने को तैयार नहीं हैं, इसलिए मार नहीं सकते तो सोचते हैं, अहिंसक हैं। ___ आदमी ऐसा है कि अपनी सब वृत्तियों के लिए रेशनेलाइजेशन खोज लेता है। कायर अपने को अहिंसक कहता है। क्योंकि कायरता तो बड़ा दुख देती है कि कोई कहे कि मैं कायर हूं। कायर अपने को अहिंसक कहता है कि मैं हिंसा नहीं करना चाहता।
इसलिए बड़ी हैरानी की बात है कि महावीर खुद क्षत्रिय थे, जैनों के बाकी तेइस तीर्थंकर भी क्षत्रिय थे-सब क्षत्रिय घरों से आये चौबीस तीर्थंकर। और उनको माननेवाले सब वणिक हैं, बनिया हैं। यह बड़ी हैरानी की बात है! इसमें कोई तालमेल नहीं दिखाई पड़ता। चौबीस तीर्थकर क्षत्रिय हों जिनके, उनके सब माननेवाले दुकानदार हों, इसमें जरूर कोई न कोई बात बड़ी महत्वपूर्ण है।
असल में अहिंसा की बात कायरों को ठीक लगी-रेशनेलाइजेशन । उनको जंची कि यह बात बिलकुल ठीक हैः कायर के कायर रहो और अहिंसक भी हो जाओ। कोई कुछ कह भी नहीं सकता कि तुम कायर हो। कायरता को छिपाने के लिए अहिंसा का सिद्धांत-इससे सुंदर और क्या हो सकता था! जो-जो डरते थे, भयभीत थे, वे अहिंसा के भीतर खड़े हो गये। अहिंसा उनके लिए कवच बन गयी। लेकिन अहिंसा उसी के जीवन में फल सकती है जो कायर नहीं है। क्योंकि अहिंसा आखिरी वीरता है। हिंसा बड़ी वीरता नहीं है।
पारने की तैयारी इसी बात की घोषणा है कि मैं कहीं मार डाला न जाऊं। वह डर का ही हिस्सा है। कोई मुझे मार न दे, इस डर से मैं पहले ही मार देता है।
हिंसक भयभीत व्यक्ति है। हिंसक पूरा बहादुर नहीं है, उसकी बहादुरी अधूरी है। वह डरा हुआ है कि मुझे मार न डाला जाये। इस भय से ही उसकी हिंसा है। आपके हाथ में तलवार है, वह तलवार खबर देती है कि आप भीतर कहीं डरे हुए हैं। वह डर हिंसा बन सकता है। ___ लेकिन अगर कोई व्यक्ति डरा ही हुआ नहीं है, तो ही दूसरे को मारने का खयाल विदा होता है। जब मैं इतना निर्भय हूं कि मुझे कोई मारे तो भी मुझे मार नहीं सकता, भीतर मैं अमृत हूं- तो फिर दूसरे को मारने का कोई सवाल न रहा। ___ अहिंसा आखिरी वीरता है। लेकिन जगत में बड़ी विडंबना है; जो आखिरी वीरता है, वह प्राथमिक कायरता का कवच बन गयी है। ऐसा रोज हो रहा है। सभी सिद्धांतों के साथ ऐसा हो रहा है। झठ आप बोल नहीं सकते, क्योंकि फंसने का डर है। तो आप सच बोलते हैं, लेकिन वह सच निर्जीव है। उसके पीछे कोई आत्मा नहीं है। वह कायर का सत्य है।
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