________________
पहले ज्ञान, बाद में दया
साधक का कर्तव्य है कि पहले श्रवण करे और फिर अपने को जो श्रेय मालूम हो, उसका आचरण करे।' ___ अंततः आचरण के पहले, साधना में उतरने के पहले निर्णय करे । लेकिन वह निर्णय तभी किया जाये, जब शुद्ध श्रवण घट चुका हो। इसलिए महावीर ने कहा कि चार तीर्थ हैं जिनसे मोक्ष जाया जा सकता है : श्रावक, श्राविका, साध्वी, साधु । चार तीर्थ हैं।
यह बड़े मजे की बात है कि महावीर के कहा कि अगर कोई ठीक से सुन भी ले, तो भी मोक्ष जा सकता है। ठीक सुनना भी एक बड़ी आंतरिक घटना है। कृष्णमूर्ति बहुत जोर देते हैं : राइट लिसनिंग, ठीक से सुनो । पर उनके सामने लोग बैठे हैं, जो नोट करते रहते हैं। वे सुनेंगे कैसे ! उनकी फिक्र इसमें है कि नोट करने में कोई चूक न जाये, घर जाकर फिर... | जिंदा आदमी बोल रहा है, वे नोट कर रहे हैं।
एक सज्जन को मैं यहां भी देखता हूं, वे नोट करते रहते हैं । वे लेखक हैं। वे किताबें लिखते हैं । उनको यहां सुनने से मतलब नहीं है। उनको कुछ समझने से भी मतलब नहीं है । उन्हें यहां से कुछ इकट्ठा कर लेना है, जिसको जाकर वे किताब में लिख देंगे। आपको सुनने का एक क्षण मिले, उसको आप गवां देते हैं। आप कुछ और कर रहे हैं, जब सना जा सकता था। और जब सना नहीं जा सकेगा. तब आप सोचेंगे। सब विकृत हो जायेगा ! __महावीर कहते हैं कि अगर कोई ठीक से सुन ले, श्रावक हो, तो भी सीधा मोक्ष जा सकता है। उनकी आवाज ठीक से सुन ले, जो प्रकाश में उठ गये हैं तो उस आवाज की दिशा को पकड़कर... ।
ध्यान रखें, यह बड़ा फर्क है । क्या कहा गया है, वह उतना मूल्यवान नहीं है । किस दिशा से आवाज आयी है, उस दिशा को पकड़कर श्रावक भी मुक्त हो सकता है। आप अंधेरे में खड़े हैं और एक आवाज आती है । आवाज में क्या कहा गया है, वह उतना सवाल नहीं है, आवाज किस दिशा से आती है, अगर उस दिशा को आप पकड़ लें, तो थोड़ी ही देर में अंधेरे के बाहर हो जायेंगे। __महावीर और बुद्ध या कृष्ण के वचन अर्थों से नहीं समझे जाते, दिशाओं के बोध... । जब महावीर बोलते हैं, तो किस दिशा से बोलते हैं ? कहां से, किस महाशून्य से वह आवाज आती है ? उस दिशा को आप पकड़ लें, आप महाशून्य के पथ पर चल पड़ें। और फिर, फिर आप सोचें, आचरण करें, निर्णय करें-क्या श्रेय है, क्या अश्रेय है। __जो नासमझ हैं, वे जल्दी निर्णय कर लेते हैं। जो समझदार हैं, वे प्रतीक्षा करते हैं; आत्मसात हो जाने देते हैं; खून-हड्डी में मिल जाने देते हैं उस आवाज को, ताकि दिशा का बोध होने लगे। और दिशा का बोध असली बात है। __महावीर मूल्यवान नहीं हैं, किस दिशा से महावीर की आवाज आ रही है, वह मूल्यवान है । अगर वह दिशा आपको दिखाई पड़नी शुरू हो जाये, तो आप समझेंगे कि यह दिशा वही है, जहां से क्राइस्ट की आवाज आती है; कृष्ण की आती है; मुहम्मद की आती है। लेकिन अगर आप शब्दों को पकड़ें, तो शब्द अलग हैं। क्योंकि मुहम्मद अरबी बोलते हैं; महावीर प्राकृत बोलते हैं; कृष्ण संस्कृत बोलते हैं; जीसस हिब्रू बोलते हैं। वे आवाजें बड़ी अलग-अलग हैं। ___पंडित आवाजों से उलझ जाते हैं। श्रावक दिशा के बोध से भर जाता है और उस दिशा में सरकने लगता है। अगर आप ठीक सुनें तो आपके भीतर रेडार पैदा हो जाता है। उस रेडार में पकड़ आने लगती है, कौन-सी दिशा। ___ महावीर मूल्यवान नहीं हैं। कहां से आती है यह आवाज; कौन बोलता है महावीर के भीतर से; कौन-सा महाशून्य, कौन-सा महासत्य, उस तरफ आप हटने शुरू हो जाते हैं एक-एक कदम । जल्दी ही आप पायेंगे, अंधेरे के बाहर आ गये हैं; महाप्रकाश आपको चारों ओर से घेरे हुए है।
आज इतना ही।
506
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org