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महावीर वाणी भाग 2
होश की सघनता ही भीतर की ज्योति है । होश का बिखर जाना ही भीतर का अंधकार है। जितना होश सघन हो जाता है, उतने हम प्रकाशित हो जाते हैं। और यह प्रकाश भीतर हो, तो फिर आसक्ति निर्मित नहीं होती। अंधेरे में निर्मित होती है। यह प्रकाश भीतर हो तो आपको मिल गयी वह व्यवस्था, जिससे कीचड़ से कमल अपने को दूर करता जायेगा। होश बीच की डण्डी है, जिससे कीचड़ से कमल दूर चला जाता है। पार हो जाता है। फिर कुछ भी उसे स्पर्श नहीं करता । फिर वह अस्पर्शित और कुंआरा रह जाता है। कमल का कुंआरापन संन्यास है ।
ही
आज इतना
पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें।
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