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________________ पहले ज्ञान, बाद में दया कभी सोचते हैं कि आप हत्या करेंगे ? आप कभी नहीं सोचते । जिन्होंने हत्या की हैं, उन्होंने भी करने के पहले कभी नहीं सोचा था कि हत्या करेंगे। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग निरंतर सोचते रहते हैं कि हत्या करेंगे, वे हत्या नहीं करते। अकसर वे लोग हत्या करते हैं, जिन्होंने कभी सोचा ही नहीं। लेकिन किसी ज्वर के क्षण में, विक्षिप्तता के क्षण में घटना घट जाती है। वे किसी की गर्दन दबा देते हैं। दबाने के बाद ही उनको पता चलता है कि यह क्या कर बैठे ! यह क्या हो गया ! लेकिन, यह आप भी कर सकते हैं! क्योंकि जिन्होंने किया है, वे आप ही जैसे भले लोग थे। उनमें कोई अंतर नहीं था करने के पहले। करने के पहले वे भी भरोसा नहीं कर सकते थे कि उनसे और हत्या हो सकती है! लेकिन उनसे हो गयी। आप से भी हो सकती I होने का सारा कारण मौजूद है- क्योंकि आप बेहोश हैं। आप जा रहे हैं, आपने कभी चोरी नहीं की, लेकिन आपको लाख रुपये के नोट रखे हुए दिखाई पड़ जायें, चोर जो भीतर सोया है, फौरन जग जायेगा। वह आपको हजार दलीलें दे देगा। वह हजार विधियां खोज लेगा। वह दलीलें फिर बुद्धि को समझाने के लिए हैं ताकि होश न रह जाये; ताकि बुद्धि सो जाये। चोरी आपसे हो जायेगी। यह जो चोरी है, यह आप किसी भी क्षण कर सकते हैं। आप कहेंगे कि मैं नहीं कर सकता। उसका कारण है कि पांच रुपये का नोट रहा होगा, पांच लाख नहीं रहे होंगे। पांच रुपये के नोट की आप चोरी नहीं करते —उतना आपकी मूर्च्छा के लिए काफी नहीं है। हर आदमी की चोरी की सीमा है। गरीब आदमी पांच रुपये की कर लेता है, अमीर आदमी पांच लाख की करता है। और अमीर आदमी है, पांच करोड़ की करता है । वह पांच करोड़ की चोरी करनेवाला पांच की चोरी नहीं करता, इससे आप यह मत समझ लेना कि अचोर है। पांच रुपये की चोरी करनेवाला पांच कौड़ी की नहीं करेगा, इससे आप यह मत समझना कि वह अचोर है। तब तक चोरी नहीं मिटेगी, जब तक मूर्च्छा नहीं मिटती। यह हो सकता है कि आपकी चोरी की कीमत हो कि कितनी कीमत पर आप चोरी करेंगे। छोटे आदमी छोटी चोरी करते है, बड़े आदमी बड़ी चोरी करते हैं। छोटे आदमी बहुत सी चोरी करते हैं— क्योंकि छोटी-छोटी करते हैं। बड़े आदमी थोड़ी चोरी करते हैं; कभी करते हैं; एकाध करते हैं - लेकिन बड़ी करते हैं। वह सब पूरा कर लेते हैं। पूरी जिंदगी की चोरी एक दफा में निपटा लेते हैं। हर आदमी की कीमत है । और कीमत परिस्थिति पर निर्भर है, आपके होश पर निर्भर नहीं है। आप सभी तरह के पाप कर सकते हैं, जो किसी मनुष्य ने कभी किये हों। इसे ध्यान में रखें । हर आदमी के भीतर पूरी मनुष्यता बैठी हुई है। जो पाप कभी भी हुआ है इस पृथ्वी पर, वह आप भी कर सकते हैं। उलटी बात भी सही है, जो पुण्य इस पृथ्वी पर कभी भी हुआ है, वह आप कर सकते हैं। आपके भीतर चंगेजखान बैठा है और महावीर भी बैठे हैं। दोनों की मौजूदगी है। और दोनों की मौजूदगी इस बात पर निर्भर करती है कि कौन सक्रिय हो जायेगा । मूर्च्छा बढ़ती चली जाये तो आप चंगेजखान की तरफ गिरने लगते हैं। होश बढ़ने लगे तो महावीर की तरफ उठने लगते हैं। परम होश के क्षण में वही आपके भीतर से भी होगा जो बुद्ध को, महावीर को, कृष्ण को, क्राइस्ट को हुआ है। परम बेहोशी के क्षण में वही आपसे होगा जो हिटलर से, नेपोलियन से, सिकंदर से, चंगेजखान से, तैमूरलंग से हुआ है। आपके भीतर दोनों छोर मौजूद हैं। और ये जो सीढ़ियां हैं बीच की, ये होश या मूर्च्छा की सीढ़ियां हैं । नीचे की तरफ उतरें तो मूर्च्छित होते चले जाते हैं। ऊपर की तरफ उठें तो होश से भरते चले जाते हैं। होश से भरते चले जायें तो आप ऊपर उठते हैं। यह महावीर की मौलिक आधारशिला है । 'जो सब जीवों को अपने समान समझता है, अपने-पराये, सबको समान दृष्टि से देखता है, जिसने सब आस्रवों का निरोध कर लिया Jain Education International 497 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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