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भिक्षु कौन? होता है— प्रकृति के करीब होता है, पशुओं के निकट होता है, उतने फैशन जल्दी नहीं बदलते। लेकिन जैसे-जैसे समाज सजग, सचेत होता है, फैशन रोज बदलते हैं। हर साल कार का माडल बदल जाता है—ऊब पैदा न हो।
पश्चिम में वस्तुओं को बदलने के साथ-साथ व्यक्तियों को बदलने की भी प्रवृत्ति गहरी हो गयी है। वह भी ऊब का ही परिणाम है। हर साल पत्नी भी बदल लेना चाहिए। नये माडल उपलब्ध हो जाते हैं। पुराने माडल के साथ जीना सिर्फ पुरानी आदतों की वजह से चल रहा है।
मैंने सुना है, एक फिल्म अभिनेत्री ने अपना सत्रहवां तलाक दिया। और जब उसने अठारहवीं शादी की, तो शादी करने के बाद उसे पता चला कि यह आदमी एक दफा पहले भी उसका पति रह चुका है। __ जिंदगी छोटी है, और अठारह विवाह, और सबकी याददाश्त रखना कठिन है, और जिंदगी इतनी जोर से भागती हुई है। तो व्यक्ति भी बदलो, भोजन बदलो, कपड़े बदलो, फिल्म बदलो-सब कुछ बदलते रहो ताकि ऊब का पता न चले। लेकिन कितना ही बदलो, ऊब जिंदगी के भीतर छिपी है। क्योंकि जिंदगी पुनरुक्ति है। और कितना ही फिल्म को बदलो, कहानी तो वही रहती है। कोई कहानी में फर्क नहीं आता। । कोई भी फिल्म रामायण से आगे नहीं जा पाती: जा नहीं सकती। वही ट्राएंगल-वही राम, रावण, सीता। वही ट्राएंगल है। कहानी के थोड़े डिटेल्स हम बदल लेते हैं, लेकिन वही त्रिकोण चलता रहता है; दो प्रेमी हैं; एक प्रेयसी है। रामायण से आगे फिल्म को ले जाना मुश्किल मालूम पड़ता है। वही कथा है-लेकिन कथा के नाम बदल जाते हैं। थोड़े-से विस्तार की बातें बदल जाती हैं, लेकिन मौलिक बात वही चलती चली जाती है
क्या करियेगा ! जब जिंदगी ही पुरानी पड़ जाती है, तो कहानी कितनी देर नयी रह सकती है, जो जिंदगी से ही पैदा होती है।
पश्चिम और पूरब का भेद यहां है। दोनों ऊब की अवस्था में पहुंच गये। जब पूरब ऊब की अवस्था में पहुंचा, तो उसने सोचा कि इस ऊब के पार कैसे जाया जाये? इस जीवन से कैसे मुक्त हों? उससे संन्यास का जन्म हुआ। उससे भिक्षु पैदा हुए, जिन्होंने जीवन से अपने को ऊपर उठा लिया। __ पश्चिम में भी ऊब की अवस्था आ गयी। इस ऊब को कैसे भूला जाये? तो पश्चिम में मनोरंजन के साधन पैदा हो रहे हैं। और कुल चेष्टा इतनी रह गयी है कि शराब, एल.एस.डी., मारिजुआना से किसी तरह अपने को भुलाकर हम जिंदगी गुजार लें। इसलिए आज पश्चिम की सरकारें, विचारशील नैतिक लोग, पुरोहित, पण्डित-सब इस कोशिश में लगे हैं कि नयी पीढियां सम्मोहित करनेवाले, बेहोश करनेवाले रासायनिक तत्त्वों, एल.एस.डी., मारिजुआना से कैसे बचें।
उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकती। उनकी कोशिश असम्भव है कि सफल हो। जब तक कि पश्चिम में पूरब का संन्यास स्थापित न हो, उनकी कोशिश सफल नहीं हो सकती। क्योंकि जिंदगी दुख दे रही है; दुख ही नहीं दे रही है, जिंदगी ऊब दे रही है। उस ऊब को या तो भुलाओ, या ऊब के पार चले जाओ।
ऊब के पार जाने के सूत्र, महावीर, भिक्षु कौन है, इस संदर्भ में कह रहे हैं। उनके सूत्र को हम समझें। 'जो अपने संयम-साधक उपकरणों तक में मूर्छा नहीं रखता, जो लालची नहीं है, जो अज्ञात परिवारों से भिक्षा मांगता है, जो संयम-पथ में बाधक होनेवाले दोषों से दूर रहता है, जो खरीदने-बेचने और संग्रह करने के गृहस्थोचित धंधों के फेर में नहीं पड़ता, जो सब प्रकार से निःसंग है, वही भिक्षु है।'
मनुष्य की आसक्ति वस्तुओं के कारण नहीं होती, मनुष्य की आसक्ति अपनी ही बेहोश होने की वत्ति के कारण होती है। आसक्ति
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