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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 अभय पर महावीर का बहुत जोर है—फिअरलेसनेस पर । क्योंकि महावीर कहते हैं, जो अभय को नहीं साधेगा वह मृत्यु से भयभीत रहेगा। सारा भय मृत्यु का भय है। भयमात्र मूल में मृत्यु से जुड़ा है। जो भी चीज हमें मिटाती मालूम पड़ती है, उससे हम भयभीत हो जाते हैं । जो भी चीज हमें संभालती मालूम पड़ती है, उससे हम चिपट जाते हैं। उसे हम आग्रहपूर्वक अपने पास रखने लगते हैं। ___महावीर कहते हैं कि अभय का जन्म अत्यंत आवश्यक है । तो कुछ भी स्थिति हो-तूफान हो कि गर्जना हो, अंधकार हो कि एकांत हो-जहां मौत किसी भी क्षण घट सकती है, वहां भी जो शांत रहे, वहां भी जो मौन रहे, अडिग रहे, अकंप रहे... | क्यों? ___ यह अकंप रहने का इशारा इसलिए है कि अगर कोई ऐसे क्षण में अकंप रहे, तो उसका इंद्रियों से संबंध छूट जाता है और आत्मा से संबंध जुड़ जाता है। अगर कंपित हो जाए, तो आत्मा से संबंध छूट जाता है और इन्द्रियों से संबंध जुड़ जाता है। ___ इस सूत्र को ठीक से समझ लें । अकंपता आत्मा का स्वभाव है। इसलिए जब भी आप अकंप होते हैं, आत्मा से जुड़ जाते हैं। और कंपना इन्द्रियों का स्वभाव है। इसलिए जितना आप कंपते हैं, उतने ही इन्द्रियों से जुड़ जाते हैं। जितना भयभीत और कंपित व्यक्ति, उतना इन्द्रियों से जुड़ा हुआ होगा। जितना अकंप और निर्भय व्यक्ति, उतना आत्मा से जुड़ने लगेगा। ___ अकंपता, कृष्ण ने कहा है, ऐसी है, जैसे कि घर में हवा का एक झोंका भी न आता हो जब कोई दिया जलता है और उसकी लौ अकंप होती है। वैसी ही आत्मा है-अकंप। तो मौका खोजना चाहिए, जहां चारों तरफ भय हो, और आप भीतर शांत और अकंप रह सकें । कठिन होगा। शुरू-शुरू में भय आपको कंपा जायेगा । लेकिन उस कंपन को भी देखते रहें। ___ आप बैठे हैं निर्जन एकांत में और सिंह की गर्जना हो रही है-छाती धकधका जायेगी; खून तेजी से दौड़ेगा; श्वास ठहर जायेगी। लेकिन यह सब आप शांति से देखते रहें। आप सिंह की फिकर न करें। आपके चारों तरफ जो हो र चेतना के दीये के चारों तरफ, उसको आप शांति से देखते रहें। और एक ही खयाल रखें कि हृदय कितनी ही जोर से धड़के-धड़के, श्वास कितनी ही तेजी से चले–चले, रोएं खड़े हो जाएं–हो जाएं, पसीना बहने लगे-बहने लगे, लेकिन भीतर मैं मौन और शांत बना रहूंगा; भीतर मैं नहीं हिलूंगा। इस न हिलने को जो पकड़ता जाता है, धीरे-धीरे इन्द्रियों से उसकी चेतना धारा मुड़ती है और आत्मा के अनुभव में प्रविष्ट हो जाती है। ऐसी घड़ी आने लगे, तो ही मृत्यु में आप बिना कंपे रह सकेंगे, अन्यथा असंभव है। अन्यथा असंभव है। मैंने सुना है, एक झेन फकीर मरने के करीब था। तो उसने अपने शिष्यों से पूछा कि सुनो, मैं मरने के करीब हूं, मौत करीब है, और यह सूरज के अस्त होते-होते मैं शरीर छोड़ दूंगा; जरा मैं तुमसे एक सलाह चाहता हूं। कोई रास्ता बताओ मरने का कुछ ऐसा अनूठा, जैसे पहले कभी कोई न मरा हो । मरना तो है, लेकिन थोड़ा मरने का मजा ले लें। शिष्य तो छाती पीटकर रोने लगे। उनकी समझ में भी न आया कि गुरु पागल तो नहीं हो गया है मरने के पहले । एक शिष्य ने कहा कि आप खड़े हो जाएं, क्योंकि खड़े होकर कभी किसी का मरना नहीं सुना । गुरु ने कहा कि नहीं, मेरे गुरु ने कहा है कि एक दफा एक फकीर खड़े-खड़े मरा था। तो यह नहीं जंचेगा; यह हो चुका। ___ किसी दूसरे शिष्य ने सिर्फ मजाक में कहा कि आप शीर्षासन लगाकर खड़े हो जाएं । ऐसा कभी नहीं हुआ होगा कि कोई सिर के बल खड़ा हुआ हो और मर गया हो। ___ फकीर ने कहा, यह बात जंचती है। वह हंसा और शीर्षासन लगाकर खड़ा हो गया। उसके पास के ही विहार में उसकी बड़ी बहन भी भिक्षुणी थी। उस तक खबर पहुंची कि उसका भाई मरने के करीब है और वह शीर्षासन लगाकर खड़ा हो गया है। वह आयी और 436 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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