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महावीर-वाणी भाग : 2
कर रहे हैं? ___ अपने चारों तरफ आप मृत्यु के माध्यम से शांति ला रहे हैं । यह शांति थोथी है, मुर्दा है। और यह शांति ज्यादा देर टिकेगी नहीं, क्योंकि इस शांति में उपद्रव के बीज छिपे हुए हैं; क्योंकि जो आप कर रहे हैं, वही आपके आस-पास के लोग आपके प्रति भी करेंगे । यह सिर्फ थोड़ी देर के लिए कलह का स्थगन है। यह पोस्टपोनमेन्ट है। और यह शांति उपद्रव से भरी हुई है-उपद्रव इसके भीतर पल रहा है। लेकिन एक और भी शांति है, जो आसपास मृत्यु लाकर नहीं, अपने भीतर जीवन को जगाकर उपलब्ध की जाती है। और जब अपने भीतर जीवन जगता है, तो आदमी अनुभव कर लेता है कि कोई भी मुझसे प्रयोजन नहीं है किसी का भी।
ध्यान रहे, यह भी हमारा अहंकार ही है कि हम सोचते हैं कि सारे लोग हमसे जुड़े हुए हैं-गाली देनेवाला मुझे गाली दे रहा है; प्रशंसा करनेवाला मेरी प्रशंसा कर रहा है। हम सब यह समझते हैं कि सारे जगत के जैसे हम केंद्र हैं और सारा जगत हमारे चारों तरफ चल रहा है । कोई रास्ते पर हंसता है, तो मेरे लिए हंस रहा है। कोई फुस-फुस-फुस करके बात करता है, तो जरूर मरा बात कर रहा है कि मैं ही इस जगत में हूं और बाकी सारे लोग मेरे लिए हैं।
किसी को प्रयोजन नहीं है। किसी को अर्थ नहीं है। अगर वे फुस-फुसाकर बातें कर रहे हैं, तो भी उनके कारण अपने हैं। अगर कोई हंस रहा है, तो भी उसके कारण अपने हैं। आप अपने को बीच में मत डालें।
लेकिन आप मान नहीं सकते । आप हर जगह अपने को बीच में खड़ा कर लेते हैं। जब तक आप बीच में नहीं होते, तब तक आपको चैन नहीं होता।
मुल्ला नसरुद्दीन के घर एक मेहमान आया हुआ था। मेहमान धनपति था, कुलीन था, सुसंस्कृत था। और उसे पता था कि मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में एक रिवाज है कि घर का जो मुखिया होता है, भोजन की टेबल पर वह सिर की तरफ बैठता है, पहली जगह पर बैठता है। वह रिवाज कभी नहीं तोड़ा जाता।
लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन ने मेहमान को चूंकि वह बड़ा आदमी था, कीमती आदमी था, उससे कहा कि आप खाने की मेज पर इस जगह बैठे, सिर की तरफ । उस आदमी ने कहा कि नहीं, क्षमा करें नसरुद्दीन, यह नहीं हो सकता । जैसा इस गांव का रिवाज है, वही उचित है। आप ही इस पर बैठे, आप इस घर के मुखिया हैं। ___ वह नहीं माना तो नसरुद्दीन गुस्से में आ गया। उसने कहा, 'तुमने समझा क्या है ? नसरुद्दीन जहां बैठेगा, वहीं टेबल का सिर है। तुम बैठो वहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं जहां बैलूंगा, वहीं मुखिया बैठा हुआ है।' ____एक दफा नसरुद्दीन के गांव में एक विवाद था । और सारे पण्डित इकट्ठे हुए, सारे ज्ञानी इकट्ठे हुए । नसरुद्दीन को नहीं बुलाया, क्योंकि कुछ उपद्रव कर दे, कुछ गलत-सही बात कह दे । लेकिन नसरुद्दीन को खबर लगी तो वह पहुंचा । लेकिन हाल भर चुका था; मंच भर चुका था। नेतागण बैठ चुके थे। कोई आदमी अध्यक्ष हो चुका था।
नसरुद्दीन, जहां जते पड़े थे, वहीं बैठ गया। और वहीं उसने धीरे-धीरे कहानी किस्से कहने शुरू कर दिये। थोड़ी देर में लोग उसमें उत्सुक हो गये । वह आदमी ही ऐसा था । लोगों ने पीठ कर ली मंच की तरफ और उसकी बातें सुनने लगे। धीरे-धीरे आधा हाल उसकी तरफ मुड़ गया। आखिर सभापति ने कहा कि नसरुद्दीन, क्यों उपद्रव कर रहे हो? क्यों अराजकता पैदा कर रहे हो? ___ नसरुद्दीन ने कहा, 'मैं नहीं कर रहा हूं। आइ एम द प्रेसिडेन्ट, आइ एम आल्वेज द प्रेसिडेन्ट । मैं कहीं भी रहूं, उससे कोई फर्क पड़ता ही नहीं । तुम चलाओ अपनी सभा, मैं सभापति हूं। मेरा कोई दूसरा स्थान है ही नहीं। मैं कहां बैलूं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।'
आप भी अपने मन में तो यही धारणा लेकर चलते हैं कि सारे चांद-तारे आपको केंद्र मानकर घूम रहे हैं। इसलिए जब पहली दफा
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