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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 था। आज वह नाच रहा है, कूद रहा है, तो आपको क्रोध उठ रहा है। क्रोध उठ रहा है-उसका नाचना, कूदना निमित्त बन रहा है। वह बच्चा आपके क्रोध का भागीदार हो जायेगा। और छोटे बच्चों को कभी समझ में नहीं आता कि क्यों उन पर क्रोध किया गया। क्योंकि उनको अभी दूसरे से इतना संबंध नहीं बना है। वे अभी अपने में जीते हैं। इसलिए छोटे बच्चे हैरान हो जाते हैं कि अकारण, कोई भी कारण नहीं था, और मां-बाप उन पर टूट पड़ते __अगर बच्चा न मिले तो आप अपनी पत्नी पर टूट पड़ेंगे। अगर कुछ भी न हो तो यह भी हो सकता है कि आप निर्जीव वस्तुओं पर टूट पड़ें–कि आप अखबार को जोर से गाली देकर पटक दें; कि आप रेडियो को गुस्से से बंद कर दें कि उसकी नॉब ही टूट जाए। जिस दिन स्त्रियां नाराज होती हैं, उस दिन घर में बर्तन ज्यादा टूटते हैं। ऐसे महंगा नहीं है यह–पति का सिर टूटे, इससे एक प्लेट का टूट जाना बेहतर है। यह सस्ता ही है । स्त्री भी भरोसा नहीं कर सकती कि उसने प्लेट छोड़ दी । वह भी सोचती है कि छूट गयी । लेकिन कभी नहीं छूटी थी। कल नहीं छूटी; परसों नहीं छूटी। और रोज अनुपात अलग-अलग होता है। __ अगर आप अपने क्रोध का हिसाब रखें, और बर्तनों के टूटने का हिसाब रखें, आप जल्दी ही पूरा आंकड़ा निकाल लेंगे। जिस दिन क्रोध ज्यादा होता है, उस दिन हाथ छोड़ना चाहते हैं-अन्कांशस । कोई जानकर भी पत्नी नहीं छोड़ रही है। क्योंकि नुकसान तो घर का ही हो रहा है। लेकिन छूटता है। मनसविद कहते हैं कि ड्राइवरों के द्वारा जो मोटर-दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें पचास प्रतिशत का कारण क्रोध है, कारें नहीं । क्रोध में आदमी ऐक्सिलरेटर को जोर से दबाये चला जाता है । वह दबाने में रस लेता है, किसी को भी दबाने में; ऐक्सिलरेटर को ही दबाता है। क्रोधी आदमी तेज रफ्तार से कार दौड़ा देता है । क्रोधी आदमी कोई भी चीज पर त्वरा से जाना चाहता है, गति से जाना चाहता है। तो रास्तों पर जो दुर्घटनाएं हो रही हैं, वे पचास प्रतिशत तो आपके क्रोध के कारण हो रही हैं। और थोड़ी घटनाएं नहीं हो रहीं हैं। दूसरे महायुद्ध में एक वर्ष में जितने लोग मरे, उससे दो गुने लोग कारों की दुर्घटनाओं से हर वर्ष मर रहे हैं। महायुद्ध वगैरह का कोई मूल्य नहीं है। कितना ही बड़ा महायुद्ध करो, जितने लोग सड़कों पर लोगों को मार रहे हैं, उतना आप युद्ध करके भी नहीं मार सकते। ये कौन लोग हैं ? और आप कभी खयाल करना कि जब आप क्रोध में होते हैं, तो आप जोर से हार्न बजाते हैं; जोर से ऐक्सिलरेटर दबाते हैं; कार को भगाते हैं। सामने वाला आदमी लगता है कि बिलकुल धीमी रफ्तार से जा रहा है-हर एक हट जाए, सारी दुनिया रास्ता दे दे, तो आप अपनी पूरी गति में आ जाएं। यह जो क्रोध है, इसका ऐक्सिलरेटर से कोई भी संबंध नहीं है। अगर ऐक्सिलरेटर को भी होश होता आप-जैसा, तो वह भी कहता कि क्यों मुझे परेशान कर रहे हो? वह भी दुखी होता। महावीर यह कह रहे हैं कि प्रत्येक व्यक्ति जीता है अपनी भीतरी नियति से। उससे जो भी बाहर आता है, वह उसके भीतर से आ रहा है। उसका संबंध उससे है, उसका संबंध आपसे नहीं है। आप शांत रह सकते हैं । अगर यह बात समझ में आ जाए तो शांत रहने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा। अगर शांत रहने का आप प्रयास करेंगे, तो वह प्रयास भी अशांति है। किसी ने गाली दी और आपने अपने को समझाया, और अपने को शांत रखा, और अपने को दबाया, तो अशांत तो आप हो चुके । अब इतना ही होगा कि यह जो आदमी गाली दे रहा है, इसने जो क्रोध पैदा किया है, वह इस पर नहीं निकलेगा, किसी और पर निकलेगा। इतना ही होगा। कहीं जाकर यह बह जायेगा। और जब तक नहीं बहेगा, तब तक आप भारी रहेंगे। 430 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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