SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्पर्शित, अकंप है भिक्षु जाने से चिंतित होता है; उनसे अपने को दूर कर लेता है - वही व्यक्ति भिक्षु है। लेकिन मरते दम तक हम बच्चों की तरह... । छोटे बच्चे तितलियों के पीछे दौड़ते रहते हैं। बूढ़े उन पर हंसते हैं कि क्या तितलियों के पीछे दौड़ रहे हो ! लेकिन बूढ़े भी तितलियों के पीछे ही दौड़ते रहते हैं । तितलियां बदल जाती हैं। इनकी अपनी तितलियां हैं। बूढ़ों की अपनी तितलियां हैं; बच्चों की अपनी तितलियां जवानों की अपनी तितलियां हैं। लेकिन सभी लोग रोशनी में चमक गये, प्रकाश में चमक गये रंगों के पीछे दौड़ते रहते हैं— इंद्रधनुषों के पीछे। अंत समय तक भी यह पीछा छूटता नहीं । मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की काफी उम्र की हो गयी; तीस वर्ष की हो गयी, और उसे पति नहीं मिल रहा है। खोज की जाती है, मां-बाप भी परेशान हो गये हैं खोज-खोजकर; उम्र ढलती जाती है। अब संदेह होने लगा है कि अब शायद विवाह न हो सकेगा। तो अपनी लड़की की चिंता में नसरुद्दीन की पत्नी सो भी नहीं पाती। एक दिन उसे खयाल आया कि अखबार में खबर दे दी जाए। और उसने एक बहुत सुंदर विज्ञापन बनाया और लिखा कि एक बहुत सुंदर युवती के लिए, जिसके पास काफी दहेज भी है, एक साहसी युवक की जरूरत है। अति साहसी युवक चाहिए, क्योंकि लड़की को पर्वतारोहण का शौक है। और जिसमें दुस्साहस हो इतनी सुंदर और साहसी लड़की के लिए, वही केवल निवेदन करे । तीन दिन तक मां-बेटी प्रतीक्षा करती रहीं कि कोई पत्र आये। तीन दिन तक कोई पत्र नहीं आया तो मां चिंतित होने लगी । लेकिन तीसरे दिन एक पत्र आया। मां भागी हुई बाहर आयी, तब तक लड़की ने पत्र ले लिया और छिपा लिया। मां ने कहा कि पत्र मुझे देखना है, किसका पत्र आया है। लड़की ने कहा कि आप न देखें तो अच्छा है। तो मां ने कहा कि यह विचार मेरा ही था - यह विज्ञापन का विचार, तो मैं जोर देती हूं कि मैं पत्र देखूंगी। और मां जिद पर अड़ गयी। लड़की ने कहा कि आप नहीं मानतीं तो देख लें । पत्र नसरुद्दीन की तरफ से था। क्योंकि विज्ञापन में कोई पता तो था नहीं— अखबार के नाम केयर आफ था, नसरुद्दीन ही निवेदन कर दिया । बूढ़ा आदमी भी वहीं खड़ा है, जहां जवान खड़े हैं। कोई भेद नहीं है। जरा भी भेद नहीं है। बूढ़े मन की भी वे ही कामनाएं हैं; वे ही वासनाएं हैं; वे ही इच्छाएं हैं। अंत समय तक भी आदमी शरीर में ही जीता चला जाता है; इसलिए मृत्यु इतनी दुखद है। मृत्यु में कोई भी दुख नहीं है; हो नहीं सकता — क्योंकि मृत्यु तो महाविश्राम है। मृत्यु में दुख की कोई सम्भावना ही नहीं है। लेकिन दुख होता है। कभी लाख में एकाध आदमी मृत्यु में आनंदपूर्वक प्रवेश करता है। सभी लोग तो दुख में ही प्रविष्ट होते हैं। लेकिन दुख का कारण मृत्यु नहीं है। दुख का कारण हमारा इंद्रियों से संयोग है, जोड़ है। और दुख का कारण हमारी वासनाएं हैं। जैसे ही मृत्यु करीब आने लगती है, हम इंद्रियों से तोड़े जाते हैं। वह जो चेतना चिपक गयी है, जुड़ गयी है, बंध गयी है, वह टूटती है । उस टूटने के कारण दुख प्रतीत होता है। और अब वासनाओं के होने का कोई उपाय न रहेगा। अब इंद्रियां खो रही हैं। हाथ-पैर शिथिल होने लगे। शरीर टूटने लगा। दुख है इस बात का कि कोई भी वासना तृप्त नहीं हो पायी और मौत आ गयी - दुख मृत्यु का नहीं है। इसलिए वे लोग, जो वासनाओं के पार हो जाते हैं, जो इंद्रियों से अपना संबंध, इसके पहले कि मृत्यु तोड़े, स्वयं तोड़ लेते हैं - वे भिक्षु हैं । और वे आनंद से मरते हैं। यह बड़े मजे की बात है : जो आनंद से मर सकता है, वही आनंद से जी सकता है। और जो दुख से मरता है, वह दुख से ही जीयेगा । क्योंकि मृत्यु जीवन का चरम उत्कर्ष है । वह आपके सारे जीवन का निचोड़ है, सार है, इत्र है। सारे जीवन में कितने ही फूल Jain Education International 425 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy