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________________ अलिप्तता और अनासक्ति का भाव-बोध अनुभव सदा सही रहेगा, जानकारी सदा सही नहीं रहेगी। तो मैं कुछ जानकारी की बातें आपसे कहता हूं। जरूरी नहीं है कि आपसे कहूं, और आपकी तैयारी बढ़ जाये तो नहीं कहूंगा। लेकिन जहां आप हैं वहां जो जानकारी की बातें हैं वही आपकी समझ में आती हैं। वह जो अनुभव की बातें कहता हूं वह तो आपको सुनायी ही नहीं पड़तीं। इस आशा में जानकारी की बात कहता हूं कि शायद उसी के बीच में एकाध अनुभव की बात भी आपके भीतर प्रवेश हो जाये । वह जानकारी की बात करीब-करीब ऐसी है जैसी एक कड़वी दवा की गोली पर थोड़ी शक्कर लगा दी जाये। वह शक्कर देने के लिए आपको नहीं लगायी गयी है, उस शक्कर के पीछे कुछ छिपा है जो शायद साथ चला जाये। अगर आप समझदार हैं तो शक्कर लगाने की जरूरत नहीं है, दवा सीधी ही दी जा सकती है। लेकिन दवा थोड़ी कड़वी होगी। उसको समझदार ले सकेगा, बाल- बुद्धि के लोग नहीं ले सकेंगे। सत्य, वह जो अनुभव का सत्य है वह थोड़ा कड़वा होगा। क्योंकि वह आपकी जिंदगी के विपरीत होगा । उसे आप तक पहुंचाना हो तो जानकारी केवल एक साधन है। एक मित्र ने पूछा है कि क्या सिद्ध पुरुष को भी सोये हुए लोगों के बीच रहने में खतरा है, या केवल साधकों के लिए यह निर्देश है? सिद्ध पुरुष को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि वह मिट ही गया । खतरा तो उसको है जो अभी है। ऐसा समझें, कि क्या बीमारों के बीच मरे हुए आदमी को रहने में कोई खतरा है? कोई बीमारी न लग जाये। लगेगी नहीं अब । मरे हुए आदमी को बीमारी नहीं लगती । चारों तरफ प्लेग हो, चारों तरफ हैजा हो, मरे हुए आदमी को बिठा दें बीच में आसन लगाकर, वे मजे से बैठे रहेंगे। न हैजा पकड़ेगा, न प्लेग पकड़ेगी । क्योंकि बीमारी लगने के लिए होना जरूरी है, पहली शर्त । वह मरा हुआ आदमी है ही नहीं अब । लगेगी किसको ? सिद्ध पुरुष को तो कोई खतरा नहीं है । क्योंकि सिद्ध पुरुष एक गहरे अर्थों में मर गया है, भीतर से वह अहंकार मर गया, जिसको बीमारियां लगती हैं। लोभ लगता है, क्रोध लगता है। वह अहंकार अब नहीं है। अब सिद्ध पुरुष को कोई खतरा नहीं है। सिद्ध पुरुष का अर्थ ही यह है कि जो अब नहीं है। खतरा तो रास्ते पर है। जब तक आप सिद्ध नहीं हो गये हैं तब तक खतरा है। एक बड़े मजे की बात है अगर आपको ऐसा पता चलता है कि मैं सिद्ध हो गया हूं, तो अभी खतरा है। क्योंकि अगर आपको पता चलता है कि मैं मर गया हूं तो अभी आप जिंदा हैं। आंख बंद करके बैठे और आप सोच रहे हैं कि मैं मर गया हूं, अब मुझे कोई बीमारी लगनेवाली नहीं है तो आप पक्का समझना, अभी सावधानी बरतें। अभी काफी जिंदा हैं, अभी बीमारी लगेगी। सिद्ध पुरुष का अर्थ है - जो हवा पानी की तरह हो गया। अब जिसे कुछ भी नहीं है, जिसे यह भी नहीं है कि मैं सिद्ध पुरुष हो गया हूं। ऐसा भाव ही मैं का जहां खो गया है वहां कोई बीमारी नहीं है। क्योंकि बीमारी लगने के लिए मैं की पकड़ने की क्षमता चाहिए, और मैं बीमारी पकड़ने का मैगनेट है। वह जो मैं का भाव है, जो अहम है, वह है मैगनेट, वह बीमारियों को खींचता है। और आप ऐसा मत सोचना कि दूसरा ही आपको बीमारी दे देता है। आप लेने के लिए तैयार होते हैं तभी देता है। आपने कभी खयाल किया होगा, प्लेग है और डाक्टर घूमता रहता है और उसको प्लेग नहीं पकड़ती, और आपको पकड़ लेती है । क्या मामला है? खुद चिकित्सक बहुत परेशान हुए हैं इस बात से कि डाक्टर है, वहीं घूम रहा है। दिन भर हजारों मरीजों की सेवा रहा है, इंजेक्शन लगा रहा है, भाग-दौड़ कर रहा है। उन्हीं कीटाणुओं के बीच में भटक रहा है। जहां आपको बीमारी पकड़ती है, उसे बीमारी नहीं पकड़ती । कारण क्या है? कारण सिर्फ एक है कि डाक्टर की उत्सुकता मरीज में है, अपने में नहीं है। इसलिए मैं क्षीण हो जाता है। वह उत्सुक है दूसरे को ठीक करने में । वह इतना व्यस्त है दूसरे को ठीक करने में कि उसके होने की उसे सुविधा ही नहीं है जहां बीमारी पकड़ती है। वह नान- रिसेप्टिव हो जाता है, क्योंकि उसको पता ही नहीं रहता है कि मैं हूं । Jain Education International 29 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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