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________________ सत्य के अनुसंधान में अपरिसीम साहस चाहिए–प्रतिष्ठा को चुनौती देने का, स्वीकृत धारणाओं को खंडित करने का, आदृत मूर्तियों को भंजित करने का । असत्य चाहे कितना ही प्रतिष्ठित हो, उसे असत्य की तरह ही घोषित करना, असत्य की तरह ही जानना साधक के लिए अत्यंत अनिवार्य है। बहुत बार प्रतिष्ठित को हम सत्य मान लेते हैं। परंपरागत को सत्य मान लेते हैं, बहुजन के द्वारा स्वीकृत को सत्य मान लेते हैं। स्वार्थ में भी यही होता है कि व्यर्थ की उलझन में हम न पड़ें, सभी जैसा मानते हैं वैसा ही हम भी मान लें और सभी के साथ भीड़ में खड़े हो जायें । लेकिन भीड़ कभी सत्य को उपलब्ध नहीं होती, समूह तो अंधकार में ही भटकता है। भीड़ से दूर उठने की हिम्मत चाहिए। __ भीड़ से दूर उठने में कठिनाई भी होगी, अड़चनें होंगी, असुविधा होगी, लेकिन वह भी सत्य की खोज-तपश्चर्या है। चाहे विज्ञान हो चाहे धर्म, इस संबंध में दोनों राजी हैं, और वह प्रतिष्ठा को, परंपरा को, भीड़ को, क्राउड का जो चित्त है, उसको चुनौती देने की बात । महावीर शुद्ध सत्य के अन्वेषक हैं। जहां-जहां स्वार्थ ने असत्य के मंदिर खड़े कर रखे हैं, वहां-वहां चोट करना जरूरी है। वह चोट मनुष्यों पर नहीं है, मनुष्यों की भूलों पर है। विश्व के वैज्ञानिक-वर्तुल में एक छोटी-सी बड़ी मधुर कथा प्रचलित है। आस्ट्रीयन वैज्ञानिक वुल्फगैंग पावली 1958 में मरा । कथा है कि ईश्वर बहुत दिन से उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कब मरे और कब आये; क्योंकि पावली जैसे आदमी मुश्किल से कभी होते हैं। असत्य को पकड़ने की, लोग कहते हैं, ऐसी क्षमता मनुष्य जाति के इतिहास में, विज्ञान की परंपरा में दूसरे व्यक्ति के पास नहीं थी। क्षणभर में असत्य को पकड़ लेना, भूल को पकड़ लेना पावली की कुशलता थी। और चाहे कितना ही खोना पड़े, कितना ही दांव पर लगाना पड़े, भूल को अस्वीकार करना या भूल को मद्देनजर करना या छिपाना उसके लिए असंभव था। हो सकता हो ईश्वर उसकी प्रतीक्षा करता हो, क्योंकि सत्य के खोजी की प्रतीक्षा ही ईश्वर कर सकता है। पावली मरा, और कथा है कि ईश्वर ने पावली से कहा कि तू भी अनूठा आदमी है। छोटी-छोटी भूलों के लिए तूने अपनी न-मालूम कितनी रातें बिना सोये बिताई हैं। और निश्चित ही जीवन के बहुत से रहस्य-वह भौतिकविद था, फिजिसिस्ट था- भौतिक शास्त्र के बहुत से रहस्य तुझे अनजाने रह गये होंगे और तू प्रतीक्षा कर रहा होगा कि कब परमात्मा से मिलना हो तो उनसे पूछ सके । तुझे कुछ पूछना तो नहीं है? मैं खुश हूं। पावली ने कहा कि धन्यभागी, हे प्रभु, एक सवाल मुझे वर्षों से चिंतित कर रहा है, और मेरे मित्रों ने, मेरे साथियों ने जितने भी सिद्धांत 383 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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